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वीर ज्ञानोदय ग्रन्थमाला
"तव चरणधूलि भी चंदन है"
- डॉ० शेखर जैन, अहमदाबाद तर्ज- चन्दन सा वदन..... अभिवन्दन है, अभिवंदन है, हे ज्ञानमती अभिवंदन है । चरणों में शीश झुका माता, तव चरण धूलि भी चंदन है ।
धर्माकुर अंकुराए मन में, बालापन से वैराग जगा । वैभव की चकाचौंध से भी, आतमपन से अनुराग जगा । यह जान सकी निज दृष्टि से, यह जीवन ही एक क्रंदन है । अभिवन्दन है . . . . . . . . . . . . . . है । अंतर के चक्षु खुले तभी, तज दिये द्वार घर विभव जान । तज दिया मोह ही निज तन से, यह सब पर है जब हुआ भान । चल पड़े चरण जिन राहों पर, राहें बन गई नन्दन वन हैं । अभिवन्दन है . . . . . . . . . . . . है । मैना मैं ना हूँ जगा ज्ञान, सम्यक्त्व कमल हो उठे मुकुल । उपसर्गों को झेला हँसकर, मन को न बनाया कभी विकल । शास्त्रों का अध्ययन किया निरत, उसमें ही डूब गया मन है । अभिवन्दन है . . . . . . . . . . . . . . है । हे महासती ! तुमने नारी जीवन को सफल बनाया है । तुमने नारी के गौरव को, फिर से सम्मान दिलाया है । पूरा जीवन ही हुआ तुम्हारा, इसके लिए समर्पण है । अभिवन्दन है . . . . . . . . . . . . . . है । साक्षात् सरस्वती की प्रतिमा, शास्त्रों की रचना की उत्तम । आर्यिकारत्न गणिनी माता, चारित्र तुम्हारा अति अनुपम । इन पावन चरणों में माता, जग करता शत-शत वंदन है । अभिवन्दन है .............. है । भूगोल जैनमत का तुमने, अवतरित कराया धरती पर । इस जम्बूद्वीप की प्रेरक माँ, खिल गया कमल इस धरती पर । कण-कण से गूंज रहा माता, तव गुण गाथा का गुंजन है । अभिवन्दन है . . . . . . . . . . . . . . ह । शांति सागर-सी दृढ़, ज्ञानी हो गुरु वीरसागर-सी तुम । निर्मात्री हो नवतीरथ की, खुद दिव्यध्वनि-सी मुखरित तुम । सान्निध्य तुम्हारा जिसे मिला, हो गया मनुज वह पावन है । अभिवन्दन है . . . . . . . . . . . . . . है । जल में भी रहीं कमल सी तुम, सब कुछ देकर अकिंचन हो । फूला जिनत्व हर क्यारी में, उस बगिया की हितचिंतक हो । वात्सल्य मिला जिन चरणों का, उनको 'शेखर' का वंदन है । अभिवन्दन है . . . . . . . . . . . . . . है ।
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