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गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती अभिवन्दन ग्रन्थ
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ज्ञानमती बन ज्ञानमती वह ज्ञान किरण फैलाती है
- वैद्य प्रभुदयाल कासलीवाल भिषगाचार्य, आयुर्वेदाचार्य, जयपुर
ज्ञानमती बन ज्ञानमती वह ज्ञान किरण फैलाती हैं। जम्बूद्वीप निर्माण करा वह बैदेही बन रहती हैं || ज्ञानमती बन ज्ञानमती ॥ मैं, ना हूँ, पर्याय यह है शुद्ध बुद्धि यों कहती हैं। मैना से बनकर वीरमती वह ज्ञानमती बन जाती हैं।। ज्ञानमती बन ज्ञानमती ॥ अनन्तज्ञान स्वामी आत्म को जान मुदित वह रहती हैं। निज आत्मा के सभी आवरण क्षय हित तप आचरती हैं । ज्ञानमती बन ज्ञानमती ॥ रहकर स्वयं ज्ञान मुद्रा में औरों का हित करती हैं। निज चर्या से सिखा आचरण सम्यक् पथ बतलाती हैं | ज्ञानमती बन ज्ञानमती ॥ महावीर का ध्यान लगाती महावीर गुण गाती हैं । ब्रह्मचर्य आजन्म पालकर उनके पथ पर चलती हैं | ज्ञानमती बन ज्ञानमती ॥ शुद्धोपयोग ही परम लक्ष्य है आत्मलीन वह रहती हैं। चारित्र मोह का क्षय करने वह तपस्विनी बन जाती हैं ॥ ज्ञानमती बन ज्ञानमती ॥ शान्त मुदित मुख उसका रहता भयाक्रान्त ना होती हैं । उत्साहपूर्ण चेष्टा रखकर वह आगे बढ़ती जाती हैं ॥ ज्ञानमती बन ज्ञानमती ॥ समता रस का पान किये वह कष्ट सभी सह लेती हैं। जो भी उसके सम्मुख आता हित की राह बताती हैं ॥ ज्ञानमती बन ज्ञानमती ॥ विद्वत्ता उनकी अद्वितीय है कृतियाँ उसकी यह कहती हैं। चले लेखनी उनकी प्रतिदिन तत्त्वज्ञान दर्शाती हैं | ज्ञानमती बन ज्ञानमती ॥ दर्शन, न्याय, साहित्य और आध्यात्मिक उनकी रचनाएँ । अपनी तीक्ष्ण बुद्धि का हमको परिचय सही कराती हैं ॥ ज्ञानमती बन ज्ञानमती ॥ "प्रभु कहता वह श्रेष्ठ आर्यिका हित निज पर का करती हैं। देखे जीवे शत शरद ऋतु प्रभु से यह मेरी विनती है ॥ ज्ञानमती बन ज्ञानमती ।।
आर्यिका ज्ञानमती
- वीरेन्द्र प्रसाद जैन, अहिंसा वाणी
अलीगंज-एटा
मैना गृह-उपवन जो चहकी, बनी क्षुल्लिका वीरमती । सम्यक्-ज्ञानाराधन से वह, ज्ञान आर्यिका ज्ञानमती ॥
लगता ब्राह्मि-सुन्दरी का यह
अभिनव रूप झलक आया, वृष-आदीश्वर परम्परा में,
नवल नखत चमकित पाया । बाल ब्रह्मचर्या पावनतम शील-धर्म-ध्वज कीर्ति कृति । मैना . . .
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