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साहित्य क्षेत्र में जिनवाणी व.
साहित्य सृजन शतक अर्द्धशतक ग्रन्थों की, रचना को नवरूप दिया ||
में ध्यान दिया ।
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गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती अभिवन्दन ग्रन्थ
"ज्ञानमती माताजी को है, शतशः बारम्बार प्रणाम"
महातपस्विनी, ज्ञान भूषिणी, दिव्य तेज की शुभ्र महान । परमपूज्य आदरणीय देवी ज्ञानमती माँ तुम्हें प्रणाम ॥ धर्म विभूति कर्मस्वरूपी सत्य शोध की कल्याणी । धन्य किया है तन मन अपना, पावन माँ महिमाशाली ॥ प्राणवान जो जन समाज की, गाता जग जिनका है नाम । ज्ञानमती माताजी को है, शतशः बारम्बार प्रणाम ॥
धर्ममार्ग ही सच्चा सुख है, जिससे पाना शिवसुख धाम । ज्ञानमती माताजी को है, शतशः बारम्बार प्रणाम ॥
निवृत्ति मार्ग की हे साधिका, भक्ति र्शिका तुम्हें नमन । धूम मची चहुँ ओर देश में, श्रेष्ठ आर्यिका तुम्हें नमन ॥
यह संसार असार जानके, वैभव सारा ठुकराया । जल वुदवुल जाना है जग को, त्याग मार्ग एष अपनाया ॥ परिवारजनों से ममता तोड़ी, घर की मैना थी ज्योति ।
मन की आशाएँ सब मन में, माता-बहिनें थी रोती ॥
उचित यही था मैना हित में, शिव-साधन का करना काम । ज्ञानमती माताजी को है, शतशः बारम्बार प्रणाम ॥
समझाया था तब माता ने, मोह पाश से जो जकड़े । कर्ममोहनीय महाप्रबल है, रखे जीव को वह पकड़े ॥ भाव शुभाशुभ के कारण ही, नरक-स्वर्ग चेतन पाता । करनी से जब काँटे बोये, फूल आश की क्यों रखता ॥
सम्यक्त्व पताका कर में लेकर, धर्मध्यान का संबल थाम । ज्ञानमती माताजी को है, शतशः बारम्बार प्रणाम ॥
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अन्तःमन शुभकार खुले, औ चली साधना के पथ में । अन्तः वाह्य परिग्रह तजके, बनी आर्यिका शुभ पद में ॥ आत्मप्रभु से मिलन न जब तक, तब तक है सुख-चैन नहीं । स्वयं स्वयं में ईश देव का, दर्शन सच्चा मिले सही ॥
धन्य हो गयी धरा आज है, पाके ज्ञानमती शुभ नाम । श्री आर्यिका माताजी को शतशः बारम्बार प्रणाम ||
शशि प्रभा जैन शशांक - आरा
ज्ञान-धर्म शुभ कर्म कला से माँ श्री का जीवन निर्मित । जिनकी पूजा औ अर्चन से, जन पाता है सुख सुरभित ॥ ममता समता की देवी का कर ले मिलके अभिवन्दन । पावनता की दिव्य शिखा का, जन-मन करता नित वंदन ॥
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