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वीर ज्ञानोदय ग्रन्थमाला
कल्पद्रुम विधान, जो आपकी स्वयं की मौलिक रचना है, वह विश्व में जैन जगत् को पहली देन है। इसके साथ भी अनेक रचनाएँ हैं। आपने जब से अपनी लेखनी प्रारंभ की, १५० ग्रंथों की रचना एवं सैकड़ों संस्कृत स्तुतियाँ आदि बनाईं। निवृत्ति मार्ग में रहते हुए भक्ति मार्ग भी आपसे अछूता नहीं है। उसी का प्रतिफल आज हम देख रहे हैं कि सारे हिन्दुस्तान में इन्द्रध्वज और कल्पद्रुम विधानों की धूम मची हुई है। चन्दन विषधरों के द्वारा डसे जाने पर भी सुगन्धि ही बिखेरता है, उसी प्रकार पू० ज्ञानमती माताजी ने सदैव परोपकार में ही अपने जीवन की सार्थकता मानी है।
जम्बूद्वीप की पावन प्रेरिका
- जम्बूकुमार जैन सर्राफ, टिकैतनगर
आज विश्व में जम्बूद्वीप की रचना को कौतूहल की दृष्टि से देखा जा रहा है और उस पर शोध कार्य चल रहा है; क्योंकि समस्त मानव जाति को शांति की परम आवश्यकता है और वह जैन धर्म में ही है, यह सर्वविदित है। इस रचना की पावन प्रेरिका आप ही हैं। अष्टसहस्री जैसे क्लिष्टतम ग्रन्थों का अनुवाद करके विद्वानों को सही दिशा बोध कराने का श्रेय आपको ही है।
हम इन्द्रध्वज, कल्पद्रुम आदि विधानों में भाग लेकर जो सातिशय पुण्योपार्जन करते हैं उसे प्राप्त कराने का श्रेय आपको ही है।
आज के युग में कुछ विद्वान् आपको माँ सरस्वती की उपाधि से अलंकृत करते हैं। मेरी समझ से यह बात कुछ हद तक सत्य ही है; क्योंकि हम नित्य प्रातः जो सरस्वती स्तोत्र का पाठ करते हैं, उसमें जिन नामों में सरस्वती का स्तवन करते हैं वे सब आप में देखे जा सकते हैं। आप विद्वन्माता अर्थात् विद्वानों की माँ हैं, इसमें आश्चर्य नहीं। आपके वाक्य में दोष होता ही नहीं, आप कुमारी हैं, आप बालब्रह्मचारिणी हैं, आप जगत् की माता हैं, इत्यादि उपाधि सर्वथा सत्य हैं।
मैंने स्वयं महसूस किया कि किसी गोष्ठी में जब मैं बोलने में मायूस हो जाता हूँ तो आपके स्मरणमात्र से नयी चेतना, सदबुद्धि जाग्रत होती है। यह मेरा परम सौभाग्य है कि जिस कुल में आपने जन्म लिया उसी कुल में मैंने भी जन्म लिया, किन्तु मेरा यह सोचा तभी सार्थक होगा, जब मैं आपके आदर्शों पर चलूँ।
इसी के साथ परम पूज्या माताजी के चरण कमलों में बारम्बार सादर वंदामि ।
बच्चे-बच्चे की परिचिता माताजी
-कु० नमिता जैन दरियाबाद [जि० बाराबंकी उ०प्र०]
जैन समाज का ऐसा कौन-सा बच्चा है जो पू० श्री ज्ञानमती माताजी के नाम से परिचित नहीं है अर्थात् सभी परिचित हैं, मैं उनके परिवार की एक छोटी सदस्या होने के नाते गौरव का अनुभव करती हूँ कि मुझे ऐसे परिवार में जन्म लेने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। मैं अपनी माँ के साथ गर्मियों की छुट्टियों में आती रहती हूँ। माताजी तब मुझे खूब अच्छी-अच्छी धार्मिक शिक्षाएँ देती हैं; उस समय मुझे बहुत अच्छा लगता है। ऐसा लगता है कि वास्तव में वे ही मेरी माँ हैं । आज माताजी ने हम जैसी कुंवारी कन्याओं के लिए मार्ग प्रशस्त कर दिया है, यह पू० माताजी की ही देन है। माताजी के ज्ञान का वर्णन करना तो सूर्य को दीपक दिखाने के समान है। पू० माताजी के पास ऐसी चुम्बकीय शक्ति है जिससे एक बार यहाँ आने पर फिर जाने का मन ही नहीं करता है। आज माताजी ने इतने अधिक अलौकिक कार्य किये कि वे अवर्णनीय हैं। अन्त में पू० माताजी के चरणों में विनम्र विनयांजलि अर्पित करते हुए मैं भगवान् से यही प्रार्थना करती हूँ कि मैं भी पू० माताजी के पद-चिह्नों पर चलकर अपना आत्मकल्याण कर सकूँ।
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