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पूज्य गणिनी आर्यिकाश्री के साथ उनके गृहस्थाश्रम के चारों भाई एवं आठ बहनें। पीछे खड़े हैं श्री सुभाषचंद जैन, ब्र. श्री रवीन्द्र कुमार जैन, श्री प्रकाशचंद जैन एवं श्री कैलाशचंद जैन । उनके नीचे हैं सौ. त्रिशला जैन, सौ. कामनी जैन, कमदनी जैन, सौ. श्रीमती जैन, सौ. शांती जैन, अ. मालती जैन । पूज्य माताजी के आजू-बाजू हैं आर्यिकाश्री अभयमती माताजी एवं श्री चंदनामती माताजी (१३ भाई-बहन एक साथ)।
अपने आर्यिका संघ एवं गृहस्थाश्रम के विशाल परिवार के साथ पूज्य माताजी सबसे पीछे से प्रथम पंक्ति में हैं बाएं से दाएं-सो. सुषमा जी, सुभाषचंद, ज. रवीन्द्र, प्रकाशचंद्र, सौ. ज्ञाना, कैलाशचंद, सो. चंदा. सो. अंजू जैन, सौ. बीना/द्वितीय पंक्ति में सौ. त्रिशला-चन्द्रप्रकाश, सौ. सुमन, सुभाष, सौ. कामनी, जयप्रकाश, कुमुदनी, सौ. श्रीमती देवी, प्रेमचंद्र, शांती देवी, राजकुमार। तृतीय पंक्ति-सौ. जैन कुमारी, क. सविता, कर, माला, कु. सोनी, कु. रश्मि, आस्था, क. बाला संजय राजन अरिजय, आदीश, विजय, शरद, शुभचंद, वीरकुमार, ब्र. बीना, कु. राधा, अकलंक, कु. मंजू।नीच पंक्ति में बैठ है-श्री पुतानचंद, सिद्धांत, स्यस, सुनदा, अभिषेक, दीपा, अर्हन्त, निकलंक, अध्यात्म, रिषभ, धनज्य, इंदू.शुभा, कविता, नमिता, सरिता एवं वीरकुमार जैन ।
परमपूज्य गणिनीआयिकारत्नश्रीज्ञानमतीमातार्ज वर्षा योग स्थापना समारोह
२५ काई सन १
२५ जुलाई, १९९१ को सरधना (मेरठ) में चातुर्मास स्थापना के समय पूज्य माताजी जनसमूह को संबोधित करती हुई अपने संघ के साथ।
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