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गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती अभिवन्दन ग्रन्थ
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पूज्य गणिनी आर्यिका श्री ज्ञानमती माताजी की पूजन
-आर्यिका चन्दनामती
स्थापना
पूजन करो जी, श्री गणिनी ज्ञानमती माताजी की पूजन करो जी । जिनकी पूजन करने से अज्ञान तिमिर नश जाता है। जिनकी दिव्य देशना से शुभ ज्ञान हृदय बस जाता है । उनके श्री चरणों में आह्वानन स्थापन करते हैं। सन्निधिकरण विधिपूर्वक पुष्पांजलि अर्पित करते हैं ।
पुष्पांजलि .... पूजन करो जी,
श्री गणिनी ज्ञानमती माताजी की पूजन करो जी ॥ १ ॥ ॐ ह्रीं श्री ज्ञानमती माताजी ! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं । ॐ ह्रीं श्री ज्ञानगती माताजी ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनं । ॐ ह्रीं श्री ज्ञानमती माताजी ! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सनिधीकरण ।
अष्टक ज्ञानमतीजी नाम तुम्हारा, ज्ञान सरित अवगाहन है। तेरी पावन प्रतिभा लखकर, मेरा मन भी पावन है । मुझ अज्ञानी ने माँ जब से, तेरी छाया पाई है। तब से दुनिया की कोई छवि, मुझको लुभा न पाई है। ज्ञानामृत जल पीने हेतु, तव पद में मेरा मन है ।
तेरी पावन प्रतिभा लखकर, मेरा मन भी पावन है ॥ १ ॥ ॐ ह्रीं श्रीज्ञानमतीमाताजी जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा ।
चंदन और सुगंधित गंधों की वसुधा पर कमी नहीं। लेकिन तेरी ज्ञान सुगन्धि से सुरभित है आज मही ॥ उसी ज्ञान की सौरभ लेने को, आतुर मेरा मन है।
तेरी पावन प्रतिभा लखकर, मेरा मन भी पावन है ॥२॥ ॐ ह्रीं श्रीज्ञानमतीमाताजी संसारतापविनाशनाय चन्दनं निर्वपामीति स्वाहा ।
जग के नश्वर वैभव से मैंने शाश्वत सुख था चाहा । पर तेरे उपदेशों से वैराग्य हृदय मेरे भाया ॥ अक्षय सुख के लिए मुझे तेरा प्रवचन ही साधन है।
तेरी पावन प्रतिभा लखकर, मेरा मन भी पावन है ॥ ३ ॥ ॐ ह्रीं श्रीज्ञानमतीमाताजी अक्षयपदप्राप्तये अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा।
कामदेव ने निज वाणों से जब युग को था ग्रसित किया। तुमने अपनी वोमल काया लघुवय में ही तपा दिया । इसीलिए तव पद में आकर शान्त हुआ मेरा मन है। तेरी पावन प्रतिभा लखकर, मेरा मन भी पावन है ॥ ४ ॥
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