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गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती अभिवन्दन ग्रन्थ
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बीसवीं सदी की महान् साधिका
- चक्रेश जैन, दिल्ली मैनेजर : दि० जैन लाल मंदिर
पापाचार और अज्ञान के भयंकर दावानल से संतप्त हो रही मानवता को सही मार्ग दिखाना महापुरुषों का ही कार्य है। महामनीषियों के वरदायी चरण जहाँ जहाँ पहुंचते हैं वहाँ उनके चमत्कारी व्यक्तित्व का प्रभाव पड़े बिना नहीं रहता।
परमपूज्य गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती माताजी भी ऐसी ही एक महान् साधिका हैं जिन्होंने नारी शक्ति को सूक्ष्मता से पहचानने का अवसर प्रदान किया है। मैंने अनुभव किया है कि उनके मुख से जो भी शब्द निकलते हैं वे एक न एक दिन पूरे अवश्य होते हैं।
हस्तिनापुर यद्यपि प्राचीनकाल से ही एक ऐतिहासिक तीर्थक्षेत्र था, लेकिन इसका वर्तमान स्वरूप जो आज हम देख रहे हैं उसका श्रेय अगर किसी को जाता है तो वह पूज्य श्री ज्ञानमती माताजी ही हैं।
जम्बूद्वीप की भव्य अद्वितीय रचना का निर्माण उनके पुनीत सानिध्य एवं मार्गदर्शन में ही सम्पन्न हुआ। माताजी के आशीर्वाद से ज्ञानज्योति रथ का प्रवर्तन भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इन्दिरा गाँधी द्वारा ४ जून १९८२ को दिल्ली से ही किया गया था।
आज हम श्रावक ही नहीं, बल्कि समस्त साधु समाज इस महान विभूति से गौरवान्वित है। मैं तो समझता हूँ कि ज्ञानमती माताजी इस बीसवीं शताब्दी की एक मात्र वह साधिका हैं जिन्हें वचनसिद्धि प्राप्त है। आज उनका आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए दूर-दूर से लोग हस्तिनापुर पहुंचते हैं।
मैं उनके श्री चरणों में अपनी विनम्र विनयाञ्जलि समर्पित करता हूँ।
विनयांजलि
- स्वदेशभूषण जैन महामंत्री : जैन समाज, दिल्ली
यह परम हर्ष का विषय है कि दिगम्बर जैन त्रिलोक शोध संस्थान हस्तिनापुर ने परम पूज्य गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती माताजी के अभिवंदन ग्रंथ के प्रकाशन का महान् कार्य अपने हाथ में लिया है। माताजी के जीवन-वृत्त उनके द्वारा रचित साहित्य की समीक्षा एवं उनका जैन धर्म ही नहीं, मानव जाति के उत्थान के लिए किये गये कार्यों का एक स्थान पर संकलन होना अत्यन्त आवश्यक है। जिससे आज ही नहीं भविष्य में भी माताजी द्वारा दिये गये मार्गदर्शन एवं सहयोग का ज्ञान हो सकेगा। जम्बूद्वीप की रचना स्थापत्य का एक महान् कार्य है और उनकी दिगम्बर जैन समाज को महानतम देन है, जो चिरस्मरणीय बनी रहेगी।
मेरे पिता श्री बशेशरनाथजी जैन एवं समस्त परिवार का माताजी के दिल्ली प्रवास के समय निकट का सम्पर्क रहा है तथा उनकी सेवा का मौका और आशीर्वाद मिलता रहा है। पूज्य माताजी की हर समय एक ही इच्छा रहती है कि दिगम्बर जैन समाज ऐसे कार्य करे जिससे जैन धर्म के मूल्यों, संस्कृति का अधिक से अधिक प्रचार हो सके।
माताजी के चरणों में मैं अपनी विनयांजलि प्रस्तुत करता हूँ और उनके दीर्घायु होने की जिनेन्द्र देव से प्रार्थना करता हूँ और आशा करता हूँ कि उनका आशीर्वाद हर सामाजिक एवं धार्मिक कार्य के लिए सदैव मिलता रहेगा।
"अभिवन्दन ग्रन्थ मात्र एक औपचारिकता है"
- हरखचन्द सरावगी, कलकत्ता अध्यक्ष : सिद्धान्त संरक्षिणी सभा
सन् १९६० में सुजानगढ़ चातुर्मास के समय से मैं पूज्य माताजी से परिचित हूँ। तब से कई जगह मुझे उनका सानिध्य प्राप्त हुआ, किन्तु सन् १९६३ के कलकत्ता चातुर्मास ने हम लोगों के हृदय में जो अमिट छाप छोड़ी है वह कभी विस्मृत नहीं की जा सकती है।
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