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गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती अभिवन्दन ग्रन्थ
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जैन सिद्धान्त की निर्दोष पाठी
- मन्नालाल बाकलीवाल, इम्फाल [मणिपुर]
श्री १०५ गणिनी आर्यिका ज्ञानमती माताजी के संघ द्वारा सम्पूर्ण भारत में विशेष धर्मोद्योत हुआ है। संघस्थ आर्यिका माताजी के उपदेशों द्वारा लाखों ही प्राणी लाभान्वित हुए हैं। उनके द्वारा लिखित धार्मिक ग्रन्थों, विधान पूजनों से सभी प्राणी लाभान्वित हुए हैं। संयम एवं चारित्र का विशेष रूप से प्रसार हुआ है। आपके संघ में सभी माताजी, त्यागीगण, श्रावकगण, ध्यानाध्ययन में रत रहते हैं। पूज्या माताजी अनेक ग्रन्थों की रचयित्री, सरल स्वभावी, मृदुभाषी और जैन सिद्धान्त की निर्दोष पाठी हैं। आपका मधुर उपदेश सुनते ही श्रोतागण कभी नहीं अघाते।
पूज्या माताजी द्वारा हस्तिनापुर में जम्बूद्वीप की रचना सदा चिरस्मरणीय रहेगी, यह एक अद्भुत अलौकिक रचना है।
श्री १०५ गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती माताजी के श्रद्धालु भक्त उन्हें अभिवंदन ग्रन्थ भेंट कर रहे हैं, इससे पूज्या माताजी का क्या यह तो उनके भक्तों का ही स्वतः पुण्यार्जन का एक अंग है, जिसके बहाने से वे गुरु-भक्ति के सुमन अर्पित कर रहे हैं। मैं इस श्रद्धा यज्ञ में अत्यन्त भक्ति के साथ सम्मिलित हूँ।
साहस, त्याग तथा ज्ञान की आगार
- डॉ. कैलाशचंद जैन [राजा टॉयज] अध्यक्ष : रत्नत्रय शिक्षा एवं शोध संस्थान, सरिता विहार, दिल्ली
पूज्या आर्यिकारत्न १०५ श्री ज्ञानमती माताजी के पहली बार लगभग २५-३० वर्ष पहले बाँसवाड़ा (राज.) में १०८ परम पूज्य आचार्य श्री शिवसागरजी के संघ में दर्शन किये। उस समय पूज्या माताजी ने जम्बूद्वीप का एक नक्शा दिखाया और कहा हम इसकी रचना करना चाहते हैं, मैंने बात हँसी में टाल दी।
लगभग सन् १९७२ में जब पूज्या माताजी देहली पधारी तो आते ही उन्होंने फिर वही बात कही- इस दफा बात कुछ ऐसी लगी, मैंने कहा कि माताजी रखो नाम दिगंबर जैन त्रिलोक शोध संस्थान और खुद अपने आपको इसका अध्यक्ष मनोनीत करता हूँ।
बाद में मुख्य कार्य क्षेत्र हस्तिनापुर में निश्चित हुआ, तबसे अब तक की कार्य की प्रगति आशातीत रही है। उसी वर्ष हमें पूज्या माताजी के आशीर्वाद से आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत लेने का सौभाग्य प्राप्त हुआ, जो कि हमारे जीवन की अमूल्य निधि है। पूज्या माताजी के साहस, त्याग तथा ज्ञान की क्या महिमा कहें- हमें तो उन पर बड़ा गौरव है और हम अपने आपको उनकी छत्र-छाया में बहुत सुरक्षित एवं संतोषी मानते हैं।
पूज्या माताजी एवं पूज्य क्षुल्लक श्री मोतीसागरजी, पूज्य आर्यिका श्री चन्दनामती माताजी व भाई रवीन्द्र कुमारजी ने हस्तिनापुर तीर्थ क्षेत्र को स्वर्गपुरी बना दिया है।
हमारी पूज्या माताजी के चरणों में सादर विनयांजलि है।
ज्ञानमती का जीवन एक चुनौती है
-हीरालाल जैन [मंत्री] . गु०दि० जैन सांस्कृतिक साहित्य प्रचार प्रशिक्षण केन्द्र, गुजरात
श्री ज्ञानमती माता द्वारा, जग ने प्रकाश जो पाया है । जिनकी वाणी ने प्राणी के अंतस का अलख जगाया है । उनका यश वर्णन चन्द शब्द बोलो कैसे कर सकते हैं । शबनम की बूंदों के द्वारा, क्या सागर को भर सकते हैं।
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