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वीर ज्ञानोदय ग्रन्थमाला
नारी जाति का गौरव
- सुमेरचन्द्र जैन, जबलपुर
पूज्या माताजी के दर्शन मैने सर्वप्रथम प्राचीन तीर्थक्षेत्र बड़ा मन्दिर हस्तिनापुर में लगभग बीस वर्ष पूर्व किये थे। उसी समय मुजफरनगर में पुनः उनके दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था। उसी समय से पू० माताजी के मन में हस्तिनापर में जम्बूद्वीप के निर्माण की अभिनव योजना थी। उनकी महान् तपस्या एवं अटूट प्रेरक शक्ति ने मूर्त रूप ग्रहण किया और आज जम्बूद्वीप न केवल भारतवर्ष में, वरन् विश्व के मानचित्र पर एक आधुनिकतम जैन तीर्थ, एक अध्यात्म केन्द्र और सुन्दर पर्यटन स्थल के रूप में विकसित हो चुका है।
भव्य जिनालयों के साथ ही मनोहारी झील के मध्य जम्बूद्वीप गौरव के मस्तक को उठाये मानो जैन धर्म की पताका आकाश में फहरा रहा हो। सुन्दर पुष्पों से सुसज्जित उद्यान, सर्व सुविधाओं से सम्पन्न आवास व्यवस्था एवं शुद्ध सुस्वाद एवं पोषक आहार व्यवस्था इस क्षेत्र को समस्त जैन तीर्थों में सर्वोच्च स्थान प्रदान करती है। प्राकृतिक सौन्दर्य में भी यह क्षेत्र अग्रगण्य है। माता ज्ञानमती ने अपने कृतित्व से अपना नाम सार्थक किया है। उनके माध्यम से अनेक ग्रंथों का प्रकाशन हुआ है और यह प्रवाह निरन्तर गतिवान् है। माता ज्ञानमती ने अपने तप, त्याग और अध्ययन से सम्पूर्ण नारीजाति को गौरव प्रदान किया है, ईश्वर से कामना है कि यह महान् महिला संत दीर्घ समय तक जैन जगत् एवं सम्पूर्ण विश्व का मार्गदर्शन करने हेतु हमें उपलब्ध रहें। उनके स्नेह एवं सानिध्य का लाभ मुझे अनेक बार मिला है। मैं धन्यभागी हूँ। इतनी महान् गणिनी रत्न जब मुझे दादा कहकर संबोधित करती हैं तो मैं हृदय से पुलकित हो जाता हूँ। ज्ञानमती माताजी का नाम सदैव अमर और शाश्वत रहेगा, ऐसी मेरी निश्चित मान्यता है। उनके चरणों में मेरा शत-शत नमन।
त्याग एवं साधना की मूर्ति माँ ज्ञानमती
-हकीम आदीश्वर प्रसाद जैन, सरधना
पूज्या माताजी ज्ञान, त्याग, तपस्या एवं सच्चारित्रता की प्रतिमूर्ति हैं। आपने अपने दीर्घ साधु जीवन में अपने ज्ञान, ध्यान, त्याग, सरलता, विद्वत्ता, स्वच्छ एवं निर्दोष साधुवृत्ति के द्वारा जो ख्याति अर्जित की है वह दिगम्बर जैन साधु संस्था के इतिहास में सदा स्वर्णाक्षरों में अंकित रहेगी।
पूज्या माताजी का वर्ष १९९१ के पावन चातुर्मास का सौभाग्य सरधना नगरी को प्राप्त हुआ था। आपके संघस्थ साधुओं ने अपने ज्ञान, त्याग एवं सरल व्यवहार से पूरे क्षेत्र में धूम मचा दी थी। पू० माताजी के दर्शनों एवं उनके मुखारविन्द से प्रवचन श्रवण करने के लिए भारत के कोने-कोने से आये हुए धर्मप्रेमी भाई-बहनों के शुभागमन से सरधना एक तीर्थ-स्थल बन गया था।
ऐसी महान् त्याग, तपस्या की विभूति माताजी के चरणों में मेरा शत-शत नमन है।
ओजस्वी वाणी की स्वामिनी
- महावीर प्रसाद जैन, मोहनी देवी जैन लालासवाला, सीकर [राज०]
दुनिया की वरिष्ठतम एवं सर्वश्रेष्ठ आर्यिका ज्ञानमती माताजी के गुणों का बखान करना सूर्य को दीपक दिखाने के समान है। व्यक्ति में कुछ न कुछ कमी रह जाती है, परन्तु गणिनी माताजी सर्वगुण सम्पन्न हैं। विद्वत्ता की दृष्टि से इस पंचमकाल में मेरी समझ में विश्व में किसी ने भी इतने धार्मिक ग्रन्थ नहीं लिखे हैं। "अष्टसहस्री" जैसे कठिन ग्रंथों का प्रकाशन, “इन्द्रध्वज" आदि विधान की रचना कर आपने धूम-सी मचा दी है। त्याग की दृष्टि में भी त्रिलोक शोध संस्थान शिक्षण शिविर, जम्बूद्वीप की व्यवस्था आदि को ध्यान में रखते हुए भी वही एक समय वह भी शुद्ध जल व व्रती के हाथ से ग्रहण करना तथा समय-समय पर उपवास कर अपने शरीर को तपा रही हैं।
ज्योतिष की दृष्टि से भी आप पीछे नहीं रहीं, "जैन ज्योतिर्लोक" "त्रिलोक भास्कर" आदि ग्रन्थों की रचना कर तथा यंत्र-मंत्र द्वारा भक्तों पर अच्छी छाप छोड़ी है।
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