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वीर ज्ञानोदय ग्रन्थमाला
सरस्वती की पर्याय माँ ज्ञानमती
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सोहनलाल बगड़ा, विजयनगर [आसाम ]
पंचम काल के इस घोर कलियुग में लुप्तप्राय मुनि परम्परा को पुनर्जीवित करने वाले चारित्र चक्रवर्ती आचार्य शान्तिसागरजी महाराज के प्रथम पट्टाधीश वीरसागरजी महाराज द्वारा दीक्षित आर्यिका माँ ज्ञानमतीजी वर्तमान आर्यिकाओं में शीर्षस्थान में विराजमान हैं। देवी सरस्वती की पर्यायवाची माँ ज्ञानमती ज्ञान की भण्डार हैं, इसका प्रमाण है आपके द्वारा रचित सैकड़ों धार्मिक ग्रन्थ । ये ग्रन्थ आने वाले समय में जैनागम को आलोकित करते रहेंगे। सम्यग्यान पत्रिका में तो जैसे माँ को दिव्यध्वनि खिरती है। आपने प्राचीन आर्यावर्त की राजधानी हस्तिनापुर में जम्बूद्वीप की रचना कर विश्व में एक अविस्मरणीय महान् कार्य किया है। इससे विश्व समाज जैन भूगोल की सच्चाई जान सकेगा। माँ झनमती के दर्शन चमत्कारी हैं, आपका आशीर्वाद मनोवांछित फल देता है। भारतवर्ष के बड़े-बड़े नेता आपसे आशीर्वाद लेने आते हैं। आपने अनेक स्थानों में चातुर्मास करके जैनागम की प्रभावना जनमानस में की है। माँ ज्ञानमती जैसी आर्यिकारत्न पाकर जैन समाज व भारतवर्ष अपने को धन्य मानता है ।
माँ ज्ञानमती धर्मज्ञान की ज्योति से मानवमात्र को मुक्ति की राह दिखाती रहें, जैनागम की नींव सुदृढ़ करती रहें और हम लोगों के हृदय में सदियों विराजमान् रहें एवम् हम लोग माँ के आदर्शों से अनुप्रेरित होते रहें। मैं अपनी यह विनयांजलि प्रस्तुत करता हुआ माँ के चरणों में कोटि-कोटि वन्दन करता हूँ ।
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माताजी के दर्शनार्थ मेरी हस्तिनापुर यात्रा
बात कुछ समय पहले की है, शायद गत दिनांक १७ फरवरी १९९० की शाम की फ्लाइट से ही मैं गोहाटी से दिल्ली पहुँचा था और "श्री पूनमचंदजी गंगवाल" झरिया वालों के साथ उनके घर में ठहरा था और उनके उस घर का गृह प्रवेश भी उसी दिन हुआ था [उनके अनुज श्री ताराचंदजी भी उस अवसर पर वहीं विद्यमान् थे] मैं पूज्य माताजी का बहुत दिनों से दर्शनाभिलाषी था और गोहाटी से यह दृढ़ निश्चय करके चला था कि हस्तिनापुर जाकर और पूज्य माता श्री के दर्शन करके ही आगे बढ़ेंगे। इस तरह पूनमचंदजी गंगवाल से अपनी इच्छा व्यक्त करते हुए उनका अनुमोदन प्राप्त किया। तब उन्होंने अपने सुपुत्र श्री गजराज को गाड़ी की व्यवस्था करने को कहा तथा तय हुआ कि सुबह ५ बजे दिल्ली से प्रस्थान करेंगे और मेरठ में आचार्य श्री कल्याणसागरजी के दर्शन करते हुए हस्तिनापुर जायेंगे। साथ में ताराचन्दजी साहब सपत्नीक रहेंगे। गाइड, फिलास्कर और सहचर ने कहा कि हम लोग अच्छे सगुन से चले हैं, धर्म लाभ होगा ही, सगुन न मानने वाला भी मुस्करा दिया। रात भर दिल्ली में वर्षा हो रही थी, इसी कारण ठंड भी बढ़ गई थी, लेकिन दर्शनाभिलाषियों ने अपने ऊहापोह पर विजय पाई और उस कड़ाके की सर्दी और उसके साथ सर्द हवा और वर्षा में ही हम चल पड़े हस्तिनापुर की ओर ।
वहीं पहुँचकर मैंने मंदिरों के दर्शन किए फिर अध्यक्ष ब्र० श्री रवीन्द्र कुमार जैन के आफिस में बैठकर जो जानकारी मिली उससे भी हम अनभिज्ञ थे, उनके यहाँ जलपान आतिथ्य का सौभाग्य प्राप्त हुआ। उन्होंने कहा कि पूज्य माताजी मेरठ से बिहार कर चुकी हैं, इसलिए मेरठ के रास्ते में वापस चलें हो सकता है कि उनके दर्शन आप सभी लोगों को हो जायें। हमने भी यही सोचा और मन में दृढ़ विश्वास भी था कि माताजी के दर्शन जरूर होंगे और हुआ भी वही ।
हस्तिनापुर से १५ मील दूर मुझे लगा कि जैन साध्वीजी आ रही हैं और कोई साधु भी हैं। मैंने ताराचन्दजी गंगवाल को कहा कि देखिये तो मुझे पूज्य माताजी का संघ ही दिख रहा है और उन्होंने भी मेरी बात का अनुमोदन किया। थोड़ा आगे बढ़कर गाड़ी रोकी और पैदल चल रहे माताजी के संघ की तरफ हम लोग बढ़े, उनके संघ का नगर में आगमन हुआ। हमने नजदीक पहुंचकर नमोस्तु व वंदना की। आनंद के अतिरेक में यह भूल ही गये कि अष्टांग प्रणाम करना था, मन में अद्भुत आश्चर्य था। क्या यही मुट्ठी भर हड्डियाँ जिस पर माँस है ही नहीं व कितनी बीमारियाँ होने के पश्चात् भी अपने कार्य में दृढ़ निश्चयबद्ध हैं और प्रचुर मात्रा में धर्म साहित्य की रचना की है ? क्या इनकी प्रेरणा से ही "जम्बूद्वीप” की रचना हो पाई है ?
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- मदनलाल बड़जात्या एडवोकेट, गोहाटी
पूज्य माताजी अपने कर्त्तव्यों के प्रति सजग हैं तथा अहर्निश जैन धर्म की प्रभावना में लगी रहती हैं।
मैं परम विदुषी, रत्नत्रय की धारिणी पूज्य माताजी के चरणों में कोटिशः शीश झुकाता हुआ उनका हार्दिक अभिनंदन करता हूँ।
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