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वीर ज्ञानोदय ग्रन्थमाला
यह माताजी की ही दैवी प्रेरणा थी कि जिसके द्वारा हस्तिनापुर तीर्थ क्षेत्र में जम्बूद्वीप जैसी धार्मिक कलाकृति एवं भौगोलिक रचना का निर्माण हुआ और जम्बूद्वीप देश के समक्ष एक अद्वितीय धार्मिक कलाकृति के रूप में प्रस्थापित हुआ।
माताजी अथाह ज्ञान की स्रोत हैं तथा मानवीय एवं दैवीय गुणों की साक्षात् मूर्ति हैं। माताजी की लेखनी को तो मानो सरस्वती का वरदान प्राप्त है। मेरे विचार में विगत दो हजार वर्षों में पूज्य माताजी के अतिरिक्त अन्य किसी भी जैन साध्वी द्वारा साहित्य व ज्ञान का इतना बड़ा स्वरचित भण्डार समाज को नहीं समर्पित किया गया।
पूज्य माताजी आज ज्ञान, ध्यान, लेखन व तपस्वी जीवन के इतने ऊँचे शिखर पर पहुँच गई हैं कि समाज के सभी पंथ व वर्ग उनके लिए समान हैं। पूज्य माताजी ने अपनी लेखनी व वाणी से प्रसूत साहित्य व ज्ञान का जो अक्षय भण्डार समाज को दिया है उसके कारण माताजी का नाम दिगम्बर जैन धर्म एवं समाज के इतिहास में सदा ही स्वर्णाक्षरों में अंकित रहेगा।
इनकी तुलना किसी से नहीं की जा सकती है
- शिखरचंद जैन, रानीमिल, मेरठ
पूज्यवर गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमतीजी के ज्ञान की, त्याग की, विद्वत्ता की, प्रचुर मात्रा में धार्मिक साहित्य रचना की, जितनी प्रशंसा पत्र-पत्रिकाओं में, सामाजिक मंचों पर हो चुकी है उनसे एक वृहद् ग्रन्थ बन सकता है; इसीलिये मैं असमंजस में हूँ कि उनके विषय में मेरा कुछ भी लिखना पुनरावृत्ति ही होगी।
रानी मिल मंदिर में और वहाँ के विश्रामगृह में कई बार उनका पदार्पण हुआ और कई-कई दिन तक विराजमान रहीं। हम लागों को उनसे धर्म लाभ लेने का अवसर मिला। उन अवसरों पर उनसे धर्मचर्या, ज्ञानचर्चा व सामाजिक पद्धतियों पर चर्चा रही। उसमें भेद-मतभेद भी रहा। परन्तु वे सदैव मेरी सम्मानित व आदरणीय रहीं और उनके द्वारा सामाजिक कार्यों में अपनी सीमित शक्ति से जैसा हो सका सहयोग दिया। ___दिगम्बर समाज में १३ पंथी व २० पंथी की पूजा पद्धति के मतभेद के कारण या कुछ उनकी यशकीर्ति व उत्कर्ष की ईर्ष्या के कारण दिगम्बर समाज में कुछ आलोचक भी रहे। उनकी कई आलोचनाओं में, मैं भी मौन रहा, परन्तु समाज के उच्च नेताओं की बड़ी सभा में और उच्चासीन नेताओं से व्यक्तिगत वार्ता में एक बात मैंने कई बार डंके की चोट पर कही कि १३ पंथी दिगम्बर समाज या संस्थाओं के महान् पुरुष वर्ग मिलकर भी जो निर्माण कार्य अब तक नहीं कर सके वह अकेली एक साधु महिला ने कर दिखाया। और हमारे १३ पंथी समाज में भी जो नव-निर्माण हुये हैं वह भी उनकी सद्प्रतियोगिता का ही फल है। उनको वर्तमान की व भविष्य की जैन-अजैन संतति आर्यिका श्री के नाते चाहे भूल जाये, परन्तु जम्बूद्वीप व जम्बूद्वीप संस्था की एक्सपर्ट आर्चटैिक्ट (मंदिर निर्माण वास्तुकलाविज्ञ) व निर्माणकर्ती के रूप में हमेशा उनकी कृतज्ञ व ऋणी रहेगी व उनका स्मरण करेगी तथा अभूतपूर्व व अनुकरणीय नवीन कल्पना की पूर्ति की प्रशंसा करती रहेगी।
देश की कई महिलाएँ राजनीति में, ज्ञान में, विज्ञान में, मानवसमाज में, लोकहित में, मानव सेवा में व नृत्य, गीत, संगीत में व मनोरंजन कला में, उच्चस्थानों में प्रसिद्धि के शिखर पर रही हैं और हैं, परन्तु प्रतिष्ठा के जिस उच्च सिंहासन पर ये विराजमान हैं। इसकी तुलना किसी से नहीं।
यदि ज्ञान के, मानव गुणों के, त्याग के, प्रशासन क्षमता के, अनुशासनप्रियता के, संघ संचालन कुशलता के व उनके द्वारा रचित ग्रंथों के व मानव उद्धार के साहित्य की रचना की गणना के अनुसार यदि किसी निष्पक्ष परीक्षक समिति द्वारा अंक दिये जायें तो मुझे आशा ही नहीं, विश्वास है कि देश की सर्वश्रेष्ठ महिला ये ही घोषित होंगी। समाज के सौभाग्य से व भगवान की कृपा से ये स्वस्थ रहें व चिरायु हों और समाज का मार्ग-दर्शन करती रहें और उनके चिन्तन-मनन से व उनकी अनोखी कल्पनाओं से व कृतियों से समाज लाभ उठाता रहे यही मेरी विनयांजलि स्वीकार करें।
"संकल्प शक्ति की साधिका"
-जयनारायण जैन, मेरठ केन्द्रीय संगठन मंत्री दि० जैन महासमिति
“यथा नाम तथा गुण" की कहावत को चरितार्थ करने वाली पूज्य गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती माताजी के प्रति आभार व विनयाञ्जलि अर्पण करने हेतु शब्दों का चयन करना कठिन है; क्योंकि उनके लिए जो भी लिखा जाये कम होगा।
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