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वीर ज्ञानोदय ग्रन्थमाला
अलौकिक कार्यों की प्रणेत्री
- जयचन्द डी० लोहाड़े, हैदराबाद
यह जानकर हार्दिक प्रसन्नता हुई कि परमपूज्य गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती माताजी के धार्मिक प्रेरणास्पद उत्कृष्ट जीवन के ५८ वर्ष की परिपूर्णता पर उनकी बहुआयामी सेवाओं एवं आध्यात्मिक जीवन के प्रति कृतज्ञता/विनय ज्ञापित करने के उद्देश्य से सम्पूर्ण दिगम्बर जैन समाज की ओर से दिगम्बर जैन त्रिलोक शोध संस्थान के नेतृत्व में एक वृहद् अभिवन्दन ग्रन्थ प्रकाशित होने जा रहा है। निश्चित रूप से परमपूज्या गणिनी माताजी ने जो अलौकिक कार्य किये हैं वह प्रेरणास्पद हैं। उनके जीवन के इस लिपिबद्ध संस्करण से न केवल जैन समाज, अपितु त्यागीवर्ग भी लाभान्वित होगा।
यह सौभाग्य की बात है कि पूज्य माताजी का सानिध्य हमें भी मिला। सन् १९६४ में जब माताजी का चातुर्मास हैदराबाद में संपन्न हुआ था, उस समय उनकी प्रेरणा, आशीर्वाद व उनके अमृतमयी प्रवचनों से मैं काफी प्रभावित हुआ। हैदराबाद का समाज उनके प्रति सदैव कृतज्ञ रहेगा। पूज्य माताजी ने जो ऐतिहासिक कार्य किये हैं वह युग-युगान्तरों तक प्रेरणा देते रहेंगे।
मैं अपनी ओर से दिगम्बर जैन समाज हैदराबाद की ओर से पूज्य गणिनी माताजी के वंदनीय चरणों में अपनी आदरांजलि अर्पित करते हुए उनकी स्वस्थ दीर्घायु की मंगलकामना करता हूँ।
श्रमण संस्कृति की उन्नयनकी
- पद्मश्री बाबूलाल पाटोदी, इन्दौर
महामंत्री - दि० जैन महासमिति
श्रमण संस्कृति के उन्नयन के लिये अर्द्धशताब्दी से अधिक समय से परमपूज्य आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती माताजी ने जो कार्य किया है वह जिनशासन के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में अंकित रहेगा।
परमपूज्य माताजी के दर्शनों का सौभाग्य सर्वप्रथम सिद्धवरकूट सिद्ध क्षेत्र पर मिला। उनकी प्रशान्त मूर्ति देखते ही मस्तक उनके चरणों में झुक जाता है। उनका व्यक्तित्व इतना प्रभावी है कि उन्होंने धर्म ध्वजा को संपूर्ण देश में फ़हरा दिया है। अनेक विधानों की रचना सरल हिन्दी में जिस प्रभावी भाषा में उन्होंने की है उससे साधारण बुद्धिवाला व्यक्ति भी भाव-विभोर हो जाता है। श्री जम्बूद्वीप मंडल विधान, श्री कल्पद्रुम मण्डल विधान, इन्द्रध्वज मण्डल विधान, सर्वतोभद्र मण्डल विधान तो उनकी ऐसी अनुपम रचना हैं, जिन्होंने सर्वसाधारण को भक्ति से ओत-प्रोत कर दिया है। जो जन संस्कृत भाषा को नहीं समझते थे वे बहुत कम संख्या में मात्र भक्ति भाव से विधानों की पूजन में मात्र “स्वाहा' शब्द को सुनते थे। पर आज हजारों की संख्या में नर-नारी एकत्रित होकर सुस्वर से जो पूजन बोलते हैं उसका आनंद ही अलग है । संक्षिप्त में यह कह सकते हैं कि प्रकाण्ड पाण्डित्यपूर्ण शैली में उन्होंने जहाँ हमारे आर्ष ग्रन्थों को लिखा, वहीं उगती हुई पौध को संस्कारित करने के लिये सुलभ बाल साहित्य को लिखकर जो उपकार किया है वह अद्वितीय है।
पूज्य माताजी ने स्वलिखित ग्रन्थ, पूर्वाचार्योंकृत ग्रन्थों की टोका एवं पद्यानुवाद करके करीब १५० ग्रन्थों की रचना की है, उससे निश्चय ही हमारी संस्कृति की पहिचान विश्व में हुई है।
पूज्य माताजी ने जहां एक ओर कनड़ भाषा पर अधिकार किया वहाँ दूसरी ओर प्रत्येक प्रदेश की जन भाषा में अपने विचारों को प्रकट करके लाखों हृदयों में श्रद्धा उत्पन्न की है।
सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य जो सदैव अमिट रहेगा वह है जंबूद्वीप की अद्भुत रचना। यह काम पूज्य माताजी के मार्गदर्शन में ऐसा हुआ है। जिसने आचार्यों द्वारा रचित जैन भूगोल को विश्व के समक्ष प्रदर्शित कर दिया।
पूज्य माताजी सदैव वर्तमान युग में चा०च० आचार्य श्री शांतिसागरजी महाराज की परम्परा की आदर्श सर्वप्रभावी गणिनी हैं जिन्होंने जैन धर्म को विश्व-विख्यात किया।
आज भी पूज्य माताजी अपनी संपूर्ण शक्ति से हस्तिनापुर जैसी भगवान के कल्याणक की पवित्र भूमि को पवित्रतम बनाने की दिशा में अहर्निश प्रयत्न कर रही हैं।
__ जिनेन्द्र देव से यही मंगल प्रार्थना है कि इस महान् आत्मा को हजारों वर्ष की वय प्रदान करे तथा वे अपनी तपस्या से स्त्रीलिंग छेद कर कुछ ही भवों के पश्चात् मोक्ष सुख प्राप्त करें ।
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