________________
गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती अभिवन्दन ग्रन्थ
से भी निजात पा रहा हूँ तथा माताजी द्वारा प्रणीत ध्यान "हीं चतुर्विंशति तीर्थंकर का ध्यान" अपने अभ्यास के साथ ही अब मैं उसे जन-जन तक पहुँचाने का सफल प्रयास कर रहा हूँ।
उक्त घटना ने मेरा जीवनक्रम ही बदल दिया है। मैं माताजी का जन्म-जन्मान्तर आभारा रहूगा। अन्त में मैं माताजी के प्रति इतना ही कहना
चाहूँगा
श्रद्धा सुमन समर्पित तुमको, जो सन्मार्ग गहा है । सत्य, अहिंसक बनी तपस्वी,
नर भव सफल किया है । टिकैतनगर धन्य हो गया,
तुम सी बेटी देकर । मात-पिता भी धन्य हो गये,
तुमको निज घर पाकर ।
सत् सत् नमन हमारा,
मम बुद्धि निर्मल हो । पदचिह्नों पर बढ़ता जाऊँ,
कर्म सभी निर्मल हों । "योगीराज" समर्पित मन-वच,
तव चरणों में हरदम ।
ध्यान निरंतर रहता तेरा, फिर डर क्या कभी भी निकले दम ।
इस युग की महान् साहित्यकार : ज्ञानमती माताजी
Jain Educationa International
[१०१
दिगम्बर जैन साहित्य में आचार्य का स्थान एक लम्बे समय से रहा है। प्रायः सभी ग्रन्थ चाहे वे न्याय व्याकरण के हों अथवा दर्शन साहित्य के हों, सभी के प्रणेता महान् रचनाकार आचार्य ही रहे हैं। प्राचीन ग्रन्थों में कोई भी आर्यिका प्रणीत ग्रन्थ अथवा उसकी टीका कभी देखने को नहीं मिली। प्राचीन ग्रन्थों में वैसे अनेकों आर्यिकाओं का उल्लेख तो अवश्य मिलता है, किन्तु ग्रन्थकार के रूप में नहीं ।
-
- पं० सुमतिचन्द शास्त्री, मोरेना [ संपादक : ज्ञानगंगा ]
यह बड़े हर्ष की और अत्यन्त गौरव की बात है कि इस २०वीं शताब्दी से दिगम्बरों में सिद्धान्त की ज्ञात तत्त्वज्ञान की मर्मस्पर्शी तथा चारों अनुयोगों के साथ-साथ भूगोल की उद्भट् विद्वान् आर्यिकाओं में आज समाज को यह रत्न भेंट किये हैं, जिनकी ज्योति का प्रकाश आज तक (पिछले समय से लेकर ) नहीं मिला।
अभी हमारे बीच दिगम्बर जैन समाज के परम सौभाग्य से कुछ गिनी-चुनी आर्यिकारत्न दिद्यमान् हैं जो समाज को अनेक रत्न भेंट कर रही हैं और अभूतपूर्व साहित्यकार के रूप में यशस्वी हैं।
सभी पूज्य आर्यिका माताओं में यदि हम किन्हीं बहुश्रुतवंत तथा प्लानिंग माइण्डेड (योजनाओं का कम्प्यूटर) यदि कोई आर्यिका वहाँ है तो वह है परम पूज्य विद्यावारिधि ज्ञान-विज्ञान की अनुपम भण्डार, उच्चकोटि की कवयित्री, सरल और सुबोध कथालेखिका, अष्टसहस्त्री और समयसार जैसे अनेक दुरुहग्रन्थों की यशस्वी टीकाकार और अनेक योजनाओं की अनुपम भण्डार परमपूज्य आर्यिका रत्न ज्ञानमती माताजी का स्थान प्रथम पंक्ति में भी प्रथम आता है।
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org