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वीर ज्ञानोदय ग्रन्थमाला
पूज्य ज्ञानमतीजी का मस्तिष्क तो एक कम्प्यूटर से भी ज्यादा श्रेष्ठ है और जम्बूद्वीप की रचना जो विश्व में अनुपम है, उनकी प्लानिग का अनुपम उदाहरण है।
उनकी कर्मठता भरी अध्यवसायता से यह जम्बूद्वीप सबके आकर्षण का एक अद्भुत केन्द्र बना हुआ है और एक दफा सभी के मुँह से ज्ञानमती माताजी के प्रति बार-बार धन्य-धन्य के शब्द निकलते हैं।
उनके द्वारा आयोजित शिविरों में हम भी राजनीति क्षेत्र से समय निकाल कर भाग लेते रहे हैं और हमने देखा कि पूज्य माताजी में अपने विषय को समर्थन देने की अद्भुत क्षमता है, इन शिविरों में स्वर्गीय गुरुवर पं० मक्खनलालजी शास्त्री,स्व० सिद्धहस्त लेखक और महान् टीकाकार डॉ० मोतीचन्द्रजी कोठारी, श्री लालबहादुर शास्त्री आदि उच्चकोटि के विद्वान् भी उस समय शिविरों में भाग लेते रहते थे और उन सब विद्वानों से नई पीढ़ी भावी लाभ उठाती थी। हम सभी अल्पज्ञ राजनैतिककार्यकर्ताओं ने भी थोड़ा-बहुत सीखने का लाभ प्राप्त किया। अतः पूज्य ज्ञानमती माताजी के आशीर्वाद के सदैव हम आभारी रहेंगे।
आज दिगम्बर जैन समाज में इन्द्रध्वज विधान, कल्पद्रुम मण्डल विधान आदि विधानों का जो देश-व्यापी प्रचलन प्रारंभ हो गया है वह भी पूज्य ज्ञानमती माताजी के एतद्विषयक रचनाओं की ही अपूर्व महिमा है और उनकी इन रचनाओं में जो लालित्य और छन्द तथा अलंकार आदि का समावेश है। उससे विधान पढ़ने वालों को और सुनने वालों को बड़ा आनंद प्राप्त होता है। बाल-कथा-साहित्य रत्न भण्डार में जो दैदीप्यमान् रत्न आपने प्रदान किये हैं उससे तो बालक-बालिकाओं को बड़ा ही लाभ मिला है। महिला उपयोगी साहित्य की रचना में भी आपने कोई कसर ही नहीं छोड़ी।
आपकी वैसे तो अनेकों देन दिगम्बरों के लिए हैं, किन्तु उनमें एक और महत्त्वपूर्ण योगदान आपका है तो वह है अनेक आर्यिका रत्नों, मुनियों आदि को गहरी खोज के साथ मंथन करके बाहर लाना उनमें प्रमुख हैं- आर्यिका आदिमती माताजी, आर्यिका जिनमती माताजी, आर्यिका अभयमतीजी आर्यिका चन्दनामतीजी आदि।
___ इसी तरह पूज्य क्षुल्लक मोतीसागरजी और ब्रह्मचारी रवीन्द्र कुमारजी, एक ऐसे युगल को आपने समाज के सुयोग्य और त्यागी-व्रती तथा मेधावी और कर्मठ शिष्य के रूप में समर्पित किया है। यह जोड़ी कभी किसी जमाने की कांग्रेस की दो बैलों की जोड़ी के समान सिद्ध हुई। जिस चिह्न ने अनेक चुनाव जीते। ठीक उसी तरह पूज्य ज्ञानमती माताजी ने भी इस जोड़ी से अनेक विजयें प्राप्त की।
वैस तो पूज्य ज्ञानमती माताजी ने स्वयं जन्मजात और पूर्व पारिवारिक दृष्टि से एक मुक्त साधना की, और संलग्न हैं। उनके परिवार का एक बड़ा भाग निरन्तर ज्ञान साधन और चरित्र साधना में लगा हुआ है।
हम तो परमप्रभु वीतराग देव से यही प्रार्थना करते हैं और आशीर्वाद चाहते हैं कि परमपूज्य ज्ञानमतीजी दीर्घ आयु प्राप्त करें। सदैव स्वस्थ रहें और वीतराग ज्ञान, विज्ञान, भण्डार को अनवरत भरती रहें और आत्मकल्याण के साथ-साथ लोक कल्याण में सदैव संलग्न रहकर सफल होती रहें।
हम अपनी यह तुच्छ शब्द पुष्पांजलि समर्पित करते हुए उनका हार्दिक अभिवंदन करते हैं।
दृढ़ता का द्वितीय नाम ज्ञानमती
-पं० नरेश जैन शास्त्री, हस्तिनापुर, जम्बूद्वीप
सम्यग्दर्शन, ज्ञान, चारित्र की साक्षात् त्रिवेणी परम तपस्विनी प्रातः स्मरणीय ज्ञान को साक्षात् अवतार हैं गणिनी आर्यिकारत्नश्री ज्ञानमती माताजी जिनके गुणों का गान करना सूर्य को दीपक दिखाना ही है। जिनके द्वारा बहुमुखी धर्मप्रभावना के कार्य प्रतिक्षण चल रहे हैं। साहित्य रचना के क्षेत्र में तो जिन्होंने सारे संसार में नया कीर्तिमान प्रतिस्थापित किया है। जिसे आने वाली पीढ़ी युगों-युगों तक याद करेगी। माताजी ने नवीन जैन साहित्य सजन करके जैन साहित्य निर्माण के क्षेत्र में इतिहास को ही बदल दिया। आज तक जो भी जैन साहित्य लिखा गया वह सब पुरुष समाज द्वारा ही निर्मित हुआ। दो हजार वर्ष के इतिहास में पू० ज्ञानमती माताजी वह प्रथम महिला हुईं जिन्होंने लेखन कार्य प्रारंभ करके महिला समाज का गौरव बढ़ाया। वैसे पूर्व काल से आज तक महिलाओं ने हर क्षेत्र में पुरुषों के साथ कंधे से कंधा लगाकर कार्य किया है। जहाँ हम रणक्षेत्र में महारानी लक्ष्मीबाई, दुर्गावती आदि वीर बालाओं का नाम लेते हैं, वहीं साहित्य-सृजन के इतिहास में पू० माताजी का नाम स्वर्णाक्षरों में अंकित रहेगा।
पू० माताजी तो गुणों की खान ही हैं, फिर भी उनके दृढ़-निश्चयी गुण ने मुझे बहुत अधिक प्रभावित किया है। मैंने स्वयं अपनी आँखों से पू० माताजी के दृढ़-निश्चयी स्वभाव को देखा है। सन् १९८५ में पू० माताजी को अशुभ कर्म के उदय से एक फोड़ा निकल आया और साथ
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