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वीर ज्ञानोदय ग्रन्थमाला
"वात्सल्य की जीवन्त प्रतिमा"
-पं० पद्मचन्द्र जैन शास्त्री [प्रतिष्ठाचार्य]
पानीपत [हरियाणा]
माताजी वात्सल्य की जीवन्त प्रतिमा हैं। जो भी आपके दर्शन एक बार कर लेता है उसका जीवन धन्य हो जाता है, उसे ऐसा प्रतीत होता है कि माताजी ने सम्पूर्ण वात्सल्य का सागर ही मुझे दे दिया हो। सैकड़ों वर्ष जीने की अपेक्षा एक क्षण ऐसी अभीक्ष्ण ज्ञानोपयोगी, त्यागमूर्ति, तपोनिधि, युगप्रमुख, महान्विदुषी, ज्ञानमती माताजी के पावन दर्शन पाना ज्यादा श्रेयस्कर है, ऐसा मैं मानता हूँ। मैंने तो अगाध श्रद्धा सहित माताजी के दर्शन अनेक बार किये हैं और ऐसा करके मैंने अपने को गौरवान्वित अनुभव किया है।
धर्म के मर्म को समझकर उसका प्रसार आत्म-कल्याण के साथ-साथ प्राणिमात्र के लिए प्रदान करना आपका मानो लक्ष्य बन चुका है। माताजी ज्ञान, ध्यान एवं तप में लीन रहते हुए त्याग व तपस्या की साक्षात् मूर्ति हैं । सन्मार्ग, जैनमार्ग एवं वीतराग मार्ग की आप साक्षात् दिवाकर हैं।
___ पावन तपो-भूमि एवं महान् धार्मिक क्षेत्र हस्तिनापुर [मेरठ] का अपना अलग ही महत्त्व है। इस क्षेत्र का परम सौभाग्य है कि माताजी के पुनीत सानिध्य एवं प्रेरणा से यहां जम्बूद्वीप एवं दिगम्बर जैन त्रिलोक शोध संस्थान की स्थापना हुई है। यहाँ माताजी ने ऐसा ज्ञान का दीप प्रज्वलित कर दिया है जो कभी नहीं बुझेगा और जिसकी ज्योति से जैन एवं जैनेतर समाज बरसों-बरसों तक धर्म लाभ प्राप्त कर सकेंगे। साथ ही अपने जीवन में ज्ञान की किरण एवं ज्योति प्रज्वलित करते रहेंगे।
बाराबंकी जिले के टिकैतनगर में वि०सं० १९९१ [ई० सन् १९३४] में शरद् पूर्णिमा के दिन श्रीमती मोहिनीदेवी की कोख से आपका शुभ जन्म हुआ। आप जैन सिद्धांत एवं जैन दर्शन की अगाध ज्ञान भण्डार होने के साथ-साथ तप एवं त्याग की जीवन्त प्रतिमा बनेंगी, यह कौन जानता था ? पूज्य माताजी अहिंसा की हिमालय स्वरूप एवं अन्तर और बाहर में किञ्चित्मात्र भी दुराव से रहित, कषायों से रहित, दया एवं परोपकार में शशि-सी धवल, आचरण में सिन्धु के समान तथा शिशु-सा सरल हृदय लिए शांति का विशाल सागर हैं। इस अभिवन्दन-ग्रन्थ के प्रकाशन पर आपको मेरा शत शत नमन तथा शत-शत वन्दन
वन्दन करता हूँ मैं, वन्दन स्वीकार करो ।
हे ज्ञानमती माता, अभिनन्दन स्वीकार करो। आपके तप, त्याग एवं पवित्र ज्ञान से प्रभावित होकर भारत जैसे महान् राष्ट्र के अनेक प्रधानमन्त्री जैसे श्रीमती इन्दिरा गाँधी, श्री राजीव गाँधी, श्री नरसिंहाराव आपके दर्शनार्थ एवं आपका पवित्र आशीर्वाद ग्रहण करने हेतु आपके चरणारविंद में समय-समय पर पधारे। अनेक मिनिस्टर एवं श्रीमन्त तथा श्रावक-शिरोमणि श्रेष्ठी वर्य आपके दर्शनों का लाभ लेकर अपना जीवन सफल मानते हैं।
महान् आत्माओं में श्रेष्ठ, अहिंसा धर्म को धारण करने वाली, आरम्भ एवं परिग्रह से रहित, सम्पूर्ण श्रेष्ठ गुणों के खजाने-स्वरूप प्रकाण्ड विदुषी, परमपूज्या, वैराग्य की मूर्ति आर्यिका ज्ञानमती माताजी के चरणों में मेरा शत-शत वन्दन तथा नमन् है।
वात्सल्य मूर्ति माँ
- शिवचरण लाल जैन, मैनपुरी [उ०प्र०]
वृक्ष हर ऋतु में पुष्पित-पल्लवित नहीं होते, मेघ प्रति समय वृष्टि नहीं करते, प्रतिदिवस स्वातिजलबिन्दु मोती नहीं बनते, किन्तु प० पू० गणिनी आर्यिकारत्न ज्ञानमती माता वह व्यक्तित्व हैं जो आजीवन प्रतिसमय जीवों को ज्ञानदान में संलग्न हैं। उनके हृदय में अपार करुणा है। वे वात्सल्य की जीवन्त प्रतिमा हैं।
मुझे स्मरण है लगभग १५ वर्ष पूर्व श्री जमादारजी के संयोजकत्व में हस्तिनापुर शिविर में उनकी कृपा का प्रथम संयोग प्राप्त हुआ। विद्वत्वर्ग के लिए उनका प्रशिक्षण एवं मार्गदर्शन अद्यावधि प्रकाश स्तम्भ का कार्य सम्पन्न कर रहा है। शिविर के पूर्व ही विद्वानों को आवश्यक नियमों के पालन का निर्देश उनकी अपनी विशेषता है। उनका स्पष्ट निर्देश था कि व्रत-नियम विद्वान् की प्राथमिक आवश्यकता है।
सर्वहितैषी माँ की प्रेरणा से अनेकांत की, देव-शास्त्र, गुरु की व अहिंसामयी धर्म की प्रतिष्ठा के लिए जो शिक्षण व प्रशिक्षण शिविरों का
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