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गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती अभिवन्दन ग्रन्थ
पुस्तक मिली और मैंने उसे सरसरी दृष्टि से देख भी लिया था।
श्री रानीवालाजी को मैंने सन्तोष करा दिया था कि वे मुझे एक घण्टे पहले मेरे प्रतिपाद्य विषय का संकेत करा दें। मैं इस उत्तरदायित्व का यथाशक्ति पालन करूँगा ।
पूज्या माताजी के आदेशानुसार मुझे "जैनागम में चारों अनुयोगों की सार्थकता" विषय दिया गया। यह विषय मेरी अभिरुचि का था। मैंने इनके सामंजस्य, न्यायबद्धता, पात्रत्व आदि को लेकर ५ दिन तक प्रातः, सायं विवेचन विस्तारपूर्वक किया, जिससे उपस्थित विद्वत् परिषद् बड़ी प्रभावित और प्रसन्न हुई। शिक्षणार्थियों ने अपने-अपने संकेत नोट किये।
मैं क्योंकि भाषाओं में भाषा को भार नहीं बनाता हूँ तथा आधुनिक दृष्टिकोणों को प्रसन्न मुद्रा में ही कहने का आदी है अतः मुझे अपने विषय के प्रतिपादन में पूरी सफलता मिली। पूज्या माताजी बहुत ही प्रसन्न थीं और उन्होंने हास्य भाषण कर्त्ता कहकर मुझे भी हँसाया था । यह सब मैं पूज्य माताजी का हो शुभाशीर्वाद मानता हूँ।
शिविर समाप्ति पर मुझे माताजी का आग्रहपूर्वक आशीर्वाद मिला कि मैं उनकी आज्ञा पर आगे सभी शिविरों में आने का विचार रखूँगा । मैंने उस आदेश का पालन किया और गजपंथा, देहली, हस्तिनापुर वाले शिविरों में मैं सोत्साह गया। देहली के शिविर में तों मैं कुलपति भी बनाया
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गया था।
मुझे खेद है कि पू० माताजी की यह योजना विद्वानों की निरुत्साहिता के कारण आगे विशेष फलवती नहीं हुई। यदि यह सफल हो जाती तो हमारे पास भी अनेक अध्येता विद्वान् सुलभ हो जाते और धर्म का प्रसार-प्रचार बढ़ता जाता, परन्तु यह वर्तमान काल का ही प्रभाव है कि इस युग में धार्मिक प्रचार पर अवसर्पिणी की छाया गहराती जा रही है।
स्वास्थ्य की अनुकूलता न होने से प्रवास करना यद्यपि मुझे कठिन है, फिर भी माताजी का आशीर्वाद लेते हुए मैं अपनी सेवाएँ सोत्साह देने को तैयार है और रहूँगा।
विनयांजलि
पूज्य १०५ गणिनी ज्ञानचन्द्रिका माताजी ज्ञानमतीजी का जहाँ कहीं भी विहार, चातुर्मास शिविर आयोजन हुआ है मुझे सपरिवार उनके प्रवचन श्रवण के साथ आहारादि का भी सुयोग मिला है विद्वान् होने के कारण जीवन में मुझे आप से अनेक प्रेरणाएं भी मिली है।
माताजी की नवनवोन्मेष शालिनी प्रतिभा से आज सारा भारत प्रभावित है। आपने जिस भी योजना को संबल दिया, उसे बरबस पूर्णता और सफलता के मार्ग पर आना ही पड़ता है। आप प्रभावक वक्ता होने के साथ प्रामाणिक स्वतंत्र लेखिका, अनुवादिका भी हैं। आपने अपनी लेखनी से जैन साहित्य का भंडार मंडित किया है।
आप दिगम्बर जैन त्रिलोक शोध संस्थान जैसी अपूर्व संस्था की जन्मदात्री हैं। जैन विषयों पर शोध के लिए आपकी प्रेरणा देशीय विद्वानों को ही नहीं विदेशी विद्वानों को भी प्राप्त हुई। यह आज की सबसे बड़ी मांग और आवश्यकता है।
मैं वीरप्रभु से प्रार्थना करता हूँ कि आप जैसी संयमी और जिनवाणी सेविका की छत्र छाया हम सब पर चिरकाल तक बनी रहे और आप चिरकाल तक साधनारत होते हुए आत्मसाधिका बनी रहें।
मेरा माताजी के चरणों में सपरिवार शत शत वन्दन ।
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'ज्ञानज्योति : एक अमर देन"
जम्बूद्वीप ज्ञानज्योति की पावन प्रेरिका परम विदुषी गणिनी पूज्या श्री १०५ आर्यिकारत्न ज्ञानमती माताजी ने समस्त भारतीय समाज को जम्बूद्वीप की महानता का परिचय दिया है। समस्त प्राणियों में भ्रातृभाव व जातीय सौमनस्य स्थापित करने की परम श्रेष्ठ भावना को लेकर संसार के प्राणियों एक दिशा बोध कराकर महान् उपकार किया है। ४ जून १९८२ को दिल्ली के लाल किला मैदान से भारतरत्न भूतपूर्व प्रधानमंत्री स्व० श्रीमती इन्दिरा गाँधी
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- पं० सुधर्मचन्द जैन, तिवरी [म०प्र० ]
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