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वीर ज्ञानोदय ग्रन्थमाला
तब वीणा के तार झनझना उठे 'ज्ञानमती' श्री गुणमाला
- प्रतिष्ठाचार्य, पं० मोतीलाल मार्तण्ड [एम०ए० शास्त्री]
ऋषभदेव [राजस्थान]
जैन वाङ्मय के चारों अनुयोगों से समलंकृत विपुल साहित्य सृजन करने वाली परम विदुषी पूज्य आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती माताजी की कीर्ति-कौमुदी जैन जगत् को "यावच्चन्द्र दिवाकर" आप्लावित करती रहेगी। स्वान्तः सुखाय लेखनी की धनी माताजी ने जिन धर्म की प्रभावनार्थ एवं ज्ञानार्थ जो साहित्य प्रदान किया, समाज चिरकाल तक ऋणी रहेगा। राष्ट्र-भाषा हिन्दी को समृद्ध करने की दिशा में जो प्रशंसनीय साहित्य प्रस्तुत हुआ, उस पर विद्वत् वर्ग शोध करता रहेगा। गजब का साहित्य, भक्तिरसमय साहित्य, आध्यात्मिक साहित्य, बस! साहित्य ही साहित्य!
जो महानुभाव कभी दर्शन नहीं करते थे और कुतर्क करके आप्तागम गुरु के श्रद्धान से कोसों दूर अपनी डफली बजाने में, पाश्चात्य सभ्यता को आदर्श मानने में, भौतिक सुखों को सुख मानकर मस्ती में झूमने वाले, भटकनेवाले नवयुवक किस प्रकार सही दिशा की ओर लौट चले और भाव से जैन हो गये; यह सब चमत्कार कर दिखाया सगीत की थिरकती, स्वर लहरी में आयोजित “इन्द्रध्वज विधान" ने, जिसे रचा है पूज्य माताजी ने। पूज्य माताजी ने न केवल इन्द्रध्वज विधान दिया, अनेक विधान दिये, इसलिए कि आत्म-बोध की दिशा में सुगम उपाय मिल जायेगा “जिनेन्द्र-भक्ति" का, उन महानुभावों को जो किन्हीं कारणों से भटक चुके हैं; अथवा भ्रमित हो रहे हैं।
विधान वाचस्पति पूज्य माताजी ने काव्यमय लेखनी में शताधिक पूजन विधानों की रचना करके पूजन स्तोत्रमय भक्ति-साहित्य को वैभव-सम्पन्न बनाने में कोई कमी नहीं रखी, इसलिए कि जिनेन्द्र भक्ति से ही सम्यग्दर्शन सुलभ है। यही कारण है कि देश के लगभग सभी प्रदेशों में अनेक विधान महोत्सव हो चुके हैं और हो रहे हैं। धर्म-प्रभावना की दिशा में सभी विधानों के आयोजन सानंद सम्पन्न हुए और जिन धर्म की महिमा होती रही।
क्या माताजी की लेखनी विधान पूजन तक ही सीमति रही? नहीं, उच्चकोटि के ग्रंथों का टीका साहित्य भी दिया और बाल-साहित्य भी। शताधिक पुस्तकें प्रकाशित हुईं और वृहद् ग्रंथ भी। अतः हस्तिनापुर शोध संस्थान ने वीर ज्ञानोदय ग्रन्थमाला को जन्म दिया।
हस्तिनापुर की धरती पुनः निहाल हो गयी। पूज्या माताजी के प्रेरणोपदेश का ही प्रतिफल है-जम्बूद्वीप-रचना। तीर्थयात्रा के प्रसङ्ग में हजारों तीर्थयात्री "जम्बूद्वीप" देखकर आश्चर्यचकित हो संस्थान की मुक्त कण्ठ से सराहना करते रहते हैं। “ज्ञानज्योति प्रवर्तन" से भी देश भर में बहुत अच्छी धर्म-प्रभावना हुई। संस्थान-स्थल पर कमल मन्दिर आदि जिनालय, संग्रहालय, ग्रन्थालय आदि कई विभाग हैं। हस्तिनापुर की धरती पूज्या माताजी के सान्निध्य को पाकर सचमुच निहाल हो गई।
पत्रिका के माध्यम से भी बहुत कुछ-स्याद्वाद सूर्य से आलोकित “सम्यग्ज्ञान" मासिक पत्रिका भी लोकप्रिय पत्रिका इसलिए हो गयी कि इसमें पूज्या माताजी की लेखनी की सामग्री पाठकों को प्रभावित किये बिना नहीं रहती। पाठकों के विचारों में नवीन चेतना प्रस्फुटित होती है। पूज्या माताजी के (पूर्व अनुज) ब्र० श्री रवीन्द्र कुमारजी जैन का सम्पादन कार्य प्रशंसनीय है। पहले श्री मोतीचंदजी भी (वर्तमान में क्षुल्लक मोतीसागरजी) सम्पादक थे।
पूज्या माताजी की चारित्रिक वृत्ति से पूरा परिवार ही दीक्षित हो गया
क्या माताजी की मातुश्री, क्या बहिनें और क्या भाई, सभी ने उसी मार्ग को अपनाया जिसे पूज्या माताजी ने प्रशस्त किया। सभी ने जिन धर्म-प्रभावना में अपने आत्म-कल्याण में अपने आप को समर्पित कर दिया। हस्तिनापुर त्याग-मार्ग से जयवंत हो गया। सभी प्रभावित हुए, पूज्य माताजी की चारित्रिक निधि एवं प्रवचनों से।
पूज्य माताजी ने उत्तर से दक्षिणांचल तक विहार किया और राजधानी दिल्ली को प्रबोध दिया। फलस्वरूप पूर्व प्रधानमन्त्री इन्दिरा गाँधी जैसे देश-नेताओं, श्रीमंतों, धीमंतों, श्रावक-श्राविकाओं ने प्रभावित होकर स्व-परोपकार का पाठ सीखा। देश के कोने-कोने में माताजी के जयघोष से जिन धर्म की महिमा बढ़ती रही ! फलस्वरूप जैन जैनेतर सभी जैनधर्म से प्रभावित हुए। विद्वानों ने विधानों के आयोजन कर सर्वत्र प्रभावना की। हमने विधानोत्सव में गजरथ महोत्सव भी किये। महानगरों, तीर्थक्षेत्रों एवं गाँवों में भी माताजी के विधानों ने काफी धूम मचा दी। . सर्वत्र जिन धर्म की महिमा का जयघोष हुआ। “इन्द्रध्वज' में ही वीणा के तार, झनझना उठे "ज्ञानमती" श्री गुणमाला।
आदर्श जीवन- बाल ब्रह्मचारिणी, वैराग्य की साकार, सौम्य, जाग्रत ज्योति स्वरूप विदुषी आर्यिकारत्न पूज्या ज्ञानमती माताजी का हम क्या अभिवंदन करें। कैसे गुणगान करें? समूचा जीवन त्याग धर्म की उच्च श्रेणी पर अपने आप में अनुपम और अनुकरणीय है। धन्य है टिकैतनगरी, जहाँ जन्म हुआ और धन्य हैं वे गुरुवर आचार्य श्री वीरसागरजी, जिन्हें ऐसी परम शिष्या मिली। शतशः वंदन, परम विदुषी पूज्या आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती माताजी को; जिनकी यशोगाथा से वीणा के तार झनझना उठे- "ज्ञानमती" श्री गुणमाला।
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