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वीर ज्ञानोदय ग्रन्थमाला
योजना में सफल नहीं हो सकतीं।
सतत स्वाध्याय से आत्मिक गुणों को प्रकट किया जा सकता है। पू० माताजी विगत दशाब्दियों से निरन्तर स्वाध्यायरत हैं। स्वाध्याय आलोड़न से उन्होंने जो प्राप्त किया उसे वे समाज को निःस्वार्थ भाव से अवबोधित करा रही हैं, यह वस्तुतः बड़ी बात है। उनके द्वारा अनेक विधाओं में प्रणीत शताधिक कृतियाँ जहाँ एक ओर मुमुक्षुओं के लिए उपयोगी सिद्ध हुई हैं, वहीं दूसरी ओर नित नये तथ्य उजागर भी हुए हैं। हस्तिनापुर जैसे पावन तीर्थ पर जहाँ एक-दो नहीं, तीन तीर्थंकरों के चार-चार कल्याणक हुए हैं, वहाँ जम्बूद्वीप की सुंदर संरचना को जो अनुयोगों में कैद है, उसे मूर्तरूप देना, कोई साधारण बात नहीं है। पू० माताजी की यह परिकल्पना निश्चय ही वर्तमान युग के लिए वरेण्य प्रमाणित हई है। आज इस पवित्र स्थल "जम्बूद्वीप" की कीर्ति दिमग्दिगन्त है। इतना ही नहीं, पूज्य माताजी ने हस्तिनापुर में ही वीरज्ञानोदय ग्रन्थमाला तथा आचार्य श्री वीरसागर संस्कृत विद्यापीठ की स्थापना कराकर ज्ञान के क्षेत्र में वह कार्य किया है, जिससे आगे आने वाली पीढ़ी सदैव कृतकृत्य रहेगी। वास्तव में इसे उनकी साधना का ही नवनीत कहा जायेगा।
आगम जो चार अनुयोगों में विभक्त है, उसे वर्तमान शैली में रोचकता के साथ पू० माताजी ने “सम्यग्ज्ञञान" मासिक पत्र के माध्यम से समाज को सुपरिचित कराया है। पत्रिका में चारों अनुयोगों से सम्बन्धित सामग्री प्रकाशित होती है। इसके माध्यम से "आगम" को जन-जन तक पहुंचाने में पूज्य माताजी का योगदान श्लाघनीय है।
पूज्य माताजी का ज्ञान-भण्डार इतना व्यापक और वैविध्य लिए हुए है कि उसे शब्दों में परिगणत नहीं किया जा सकता है। बात १०-११ फरवरी १९९० की है। मेरठ में वात्सल्य निधि पू० आचार्य श्री १०८ कल्याणसागरजी महाराज की सत्प्रेरणा और पावन सान्निध्य में दो दिन की एक णमोकार महामंत्र की वृहद् संगोष्ठी में परमविदुषी, आगमवेत्ता पू० आर्यिका माताजी भी आमंत्रित थीं। उन्होंने जो णमोकार मंत्र पर सारगर्भित वक्तव्य दिया उससे उनकी ज्ञान-गरिमा प्रतिबिम्बित हुई। उन्होंने णमोकार मंत्र के सदुपयोग पर बल देते हुए कहा कि इस महामंत्र में वह चुम्बकीय शक्ति है, जो मन को असुर से बचाकर सुर में लगा देती है। यह महामंत्र द्वादशांग वाणी के सार को संजोये हुए है। इसका उपयोग मात्र शब्द उच्चारण तक ही सीमित न रह जाये, अपितु इसमें व्यंजित भावों को अपने में साकार करना होगा। गूढ़ से गूढ़तम विषय को सरल और सुरुचिपूर्ण शैली में प्रस्तुत करना यह इस बात का प्रतीक है कि पू० माताजी ने इन विषयों को आत्मसात् किया है। आगम को सही-सही रूप में समझना और उसे आज की शैली में पाठकों तक पहुँचाना, यह एक बहुत बड़ी बात है।
वास्तव में पू० माताजी को ज्ञान का आगार यदि कहा जाये तो यह उनके लिए अत्युक्ति न होगी। ऐसी महान् आत्मा का सतत सान्निध्य और आशीर्वाद अनेक सहस्राब्दि तक समाज को मिलता रहे, इसी कामना और भावना के साथ उन्हें अनन्त बार वंदामि।
जैन समाज के लिए एक प्रकाश-स्तंभ
- जिनेन्द्र कुमार संपादक जैन समाज दैनिक जयपुर, यंग लीडर दैनिक, अहमदाबाद
पावन प्रेरिका परम पूज्य १०५ गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती माताजी का बाल्यावस्था से अब तक का जीवन समूचे जैन समाज के लिये एक प्रकाश-स्तम्भ के समान रहा है, जिसके आलोक में जहां मुनि परम्परा को एक नया जीवन्त स्वरूप मिला है वहीं समाज में नैतिकता और अहिंसा के तत्त्वों-मूल्यों ने नया महत्त्व भी अर्जित किया है। हस्तिनापुर तीर्थ पर पूज्य माताजी की प्रेरणा से निर्मित जम्बूद्वीप इस आलोक को आने वाली अनेक सदियों तक, सतत कायम रखे, यही कामना है।
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