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आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
[खण्ड : २
नहीं रही, अत: व्यवहार या उपयोग का वियय न रहने से वह क्रमशः विलुप्त या विस्मृत होती गयी। आज के मानव में वह शक्ति किसी भी रूप में नहीं रह पायी है ।
प्रो० हेस, स्टो इन्थाल और मैक्समूलर
जर्मन प्रो० हेस ने पहले-पहल इस सिद्धान्त का उद्घाटन किया था। प्रो० हेस ने लिखित रूप में इसे प्रकट नहीं किया। अपने किसी भाषण में उन्होंने इसकी चर्चा की थी। इसके बाद डा० स्टाइन्थाल ने इसे व्यवस्थित रूप में लेख-बद्ध किया और विद्वानों, के समक्ष रखा। स्टाइन्थाल भाषा-विज्ञान और व्याकरण के तो विशेषज्ञ थे ही, तक शास्त्र और मनोविज्ञान के भी प्रोढ़ विद्वान थे। भाषा-विज्ञान के क्षेत्र में वे पहले विद्वान् थे, जिनका मत था कि मनोविज्ञान का सहारा लिये बिना भाषा का वैज्ञानिक अध्ययन नहीं हो सकता । उन्होंने अपनी एक पुस्तक में व्याकरण, तर्कशास्त्र और मनोविज्ञान के पारस्परिक सम्बन्धों का विशद विवेचन किया। भाषा के मनोवैज्ञानिक पक्ष पर उन्होंने और भी कई पुस्तकें लिखीं।
प्रो० मैक्समूलर ने भी इसी सिद्धान्त पर चर्चा की। वे संस्कृत के और विशेषतः वेदों के बहुत बड़े विद्वान् थे। उनका मुख्य विषय साहित्य एवं दर्शन था। पर भाषा-विज्ञान पर भी उन्होंने कार्य किया। ने भारतीय विद्याओं के पक्षधर थे। भारत की संस्कृति, साहित्य, तत्वज्ञान तथा भाषा की प्रकृष्टता से संसार को अवगत कराने में उनका नाम सर्वाग्रणी है। उनकी विवेचन शैली अत्यन्त रोचक थी। सन् १८६१ में भाषा-विज्ञान पर उन्होंने कुछ भाषण दिये। भाषा-विज्ञान जैसे शुष्क और नीरस विषय को उन्होंने इतने मनोरंजक और सुन्दर प्रकार से व्याख्यात किया कि अध्ययनशील व्यक्ति इस ओर आकृष्ट हो उठे। तब से पूर्व भाषा-विज्ञान केवल विद्वानों तक सीमित था। सामान्य लोग इससे सर्वथा अपरिचित थे। इसका श्रेय प्रो० मैक्समूलर को है कि उनके कारण इस ओर जन-साधारण को रुचि जागृत हुई।
प्रारम्भ में प्रो० मैक्समूलर को धातु-सिद्धान्त समीचीन जंचा और उन्होंने अपनी पुस्तकों में इसकी चर्चा भी की, पर, बाद में अधिक गहराई में उतरने पर विश्वास नहीं रहा और उन्होंने इसे निरर्थक कहकर अस्वीकार कर दिया। ऐसा लगता है, भाषा के उद्भव के सम्बन्ध में तब तक कोई सिद्धान्त जम नहीं पाया था। उपयुक्त सिद्धान्त एक नये विचार के रूप में विद्वानों के सामने आया, इसलिए सम्भवतः बहुत गहराई में उतर कर सहसा उन्होंने इसका औचित्य मान लिया, पर, वह मान्यता स्थायी रूप से टिक नहीं पाई।
सूक्ष्मता से विचार करें, तो यह कल्पना शून्य में विचरण करती हुई सी प्रतीत होती है।
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