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२०८] आगम और त्रिपटिक : एक अनुशीलन
[खण्ड :२ (ख) महावग्ग १४. महापदान-सुत्त
१६. महागोविन्द-सुत १५. महानिदान-सुत
२०. महासमय-सुत्त १६. महापरिनिवाण (न)-सुत्त
२१. सक्कपह-सुत्त १७. महासुदस्सन-सुत्त
२२. महासतिपट्ठान-सुत्त १८. जनवसभ-सुत्त
२३. पायासिराजज-सुत्त (पायासि-सुत्त)
(ग) पाटिक-वम्ग
२४. पाटिक-सुत्त ( पाथिक-सुत्त ) ३०. लक्खण-सुत्त २५. उदुम्बरिकसीहनाद-सुत्त(उदुम्बरिक-सुत्त) ३१. सिं (सि) गालोषाद-सुत्त २६. चक्कवत्तिसोहनाद-सुत्त (चक्कत्ति-सुत्त) ३२. आटानाठिय-सुत्त २७. अग्गज्ञ सुत्त
३३. सगीतपरियाय-सुत्त (संगीति-सुत) २८. सम्पसादनी (नि) स-सुत्त
३४. दसुत्तर-सुत २६. पासादिक-सुत्त
सोलक्खन्ध-वग्ग के अन्तर्गत संख्या एक पर सूचित ब्रह्मजालसुत्त में बुद्ध के समसामयिक बासठ दार्शनिक मतों का उल्लेख है, जो भारतीय दर्शन और इतिहास के अध्ययन की दृष्टि से महत्वपूर्ण है । सीलक्खन्ध वग्ग में संख्या तीन पर निर्दिष्ट सामअफल-सुत्त में बुद्ध के समसामयिक धर्म-प्रवर्तकों का वर्णन है, जो अपने को तीथंडर कहते थे। उनके नाम हैं : पूरण कस्सप, मक्खलि गोसाल, अजितकेसकम्बल, पकुधकच्चायन, निगण्ठनाथपुत्त तथा संजय बेलट्ठिपुत्त ।
मज्झिमनिकाय : चार आर्य सत्य, ध्यान, समाधि, कर्म आत्मवाद के दोष, निर्वाण आदि विषयों का विशद विवेचन किया गया है। यह पन्द्रह वर्गों के अन्तर्गत एक सौ बावन सुत्तन्तों में विभक्त है।
(क) मूलपरियाय-वग्ग १. मूलपरियाय-सुत्त
६. आंकखेय्य-सुत्त २. सब्बासव-सुत्त
७. वत्यूपम-सुत्त ३. धम्मदायाद-सुत्त
८ सल्लेख-सुत्त ४. भयभेरव-सुत्त
६ सम्मादिट्ठि-सुत्त ५. अनंगण-सुत्त
१० सतिपट्टान-सुत्त
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