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भागम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन पप सूक्ष्मता से गवेषणा की जानी अपेक्षित है। यूनानी से ब्राही
कुछ विद्वानों का अभिमत है कि ब्राह्मी-लिपि का उद्गम-खोत यूनानी लिपि है। इस मत के परिपोषक विद्वानों में डा. अल्फेड मूलय, जेम्स प्रिन्सेप तथा सेनाट आदि मुख्य हैं। सेना ने इस सम्बन्ध में जो विश्लेषण किया है, उसके अनुसार सिफन्दर के भारत-आक्रमण के अनन्तर यूनानियों तथा भारतीयों का पारस्परिक सम्पर्क बढ़ा । तब तक भारतीयों में लेखन-कला प्रचलित नहीं थी। उन्होंने यूनानियों से उसे सीखा। उसके आधार पर उन्होंने वाह्मी-लिपि की रचना की।
यूनानियों के साथ सम्पर्क जुड़ने से बहुत पहले भारत में लिपि-कला का प्रसार था। यहां के निवासी लिखना जानने थे; अतः यूनानी लिपि के साथ ब्राह्मी का सम्बन्ध जोड़ने की स्थिति नहीं आती। इस प्रकार के विचार बूलर तथा डिरिंजर आदि विद्वानों ने व्यक्त किये, जो महत्वपूर्ण हैं। क्योंकि चन्द्रगुप्त मौर्य के काल के आस-पास ब्राह्मी-लिपि की उत्पत्ति मानी जाये तो उसके पौत्र अशोक के समय तक वह इतनी विकसित व समुन्नत हो जाये, यह कैसे सम्भव हो सकता है ?
फच विद्वाम् कुपेटी
- कभी कभी प्रबुद्ध जन भी कुछ ऐसी कल्पनाए कर लेते हैं, जो स्पष्टतया असंगत होती हैं। ऐसी ही एक कल्पना फ्रेंच विद्वान् कुपेटी की ब्राह्मी लिपि के उद्भव के सम्बन्ध में है। उनकी मान्यता है कि ब्राह्मी-लिपि की उत्पत्ति चीनी लिपि से हुई । लिपि-विज्ञान पर कार्य करने वाले विद्वान् तथा अध्येता जानते हैं कि पीनी और ब्राह्मी का कोई मेल नहीं है। चीनी मूलतः चाहे कितना ही परिवर्तित सही, एक प्रकार से चित्र-लिपि का ही कलेवर लिये इए है। जैसा कि पहले कहा गया है, चीनी लिपि में वर्णात्मक व अक्षरात्मक ध्वनियां नहीं हैं। उसमें शब्दात्मक ध्वनियों के परिचायक चित्रात्मक चिह हैं । ऐसे चिह उसमें बहुत अधिक हैं। वे चालीस-पचास हजार की सीमा तक पहुंच जाते हैं। यद्यपि अब चीनी विद्वानों ने उनमें से सर्वाधिक प्रचलित एवं प्रयुक्त चिह्नों को लिया है, जिनकी संख्या लगभग पांच सौ है। उन्हें भी जितना हो सका, सरल बनाने का प्रयास किया है और अब उन्हीं चिह्नों से सारा काम लिया जा रहा है। यह स्वयं सोचा जा सकता है, ब्राह्मी जैसी लिपि से जिसके चिह्न अक्षतात्मक ध्वनियों के अभिव्यंजक हैं, दूसरे शब्दों में जो लिपि भक्षय-गठित है, पीनी लिपि का केसे मेल हो सकता है ?
माना कि पीनी लिपि बहुत प्राचीन है। चीनी किंवदन्ती के अनुसार ई० पूर्व ३२००
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