Book Title: Agam aur Tripitak Ek Anushilan Part 2
Author(s): Nagrajmuni
Publisher: Arhat Prakashan
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६९.1
आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन प्रविष्ट की चर्चा की है।
पुण-फलाणि ? तित्थयर-गणहर-रिसि चक्कवट्टि-बलदेव-वासुदेव-सुर-विज्जाहररिद्धीओ। णिवेयणी णाम पाद-फल-संकहा । काणि पाव-फलाणि ? णिरय-तिरिय-कुमाणुसजोणीसु जाइ-जरा-मरण-वाहि-वेट णा-द्रालि हादीणि । संसार सरीर-भोगेसु वेरगुपाइणी णिवेयणी णाम । उक्त च
माक्षेपणी तत्त्वविधानभूतां, विक्षेपणी तत्त्वविगन्तशुद्धिम् । संवेगिनों धर्मफलप्रपंचां निगिनी चाह का विरागाम् ॥ ७५ ॥
एत्य विक्खेवणी णाम कहा जिणवयण-मयाणंतस्स ण कहेयव्वा । अगहिव-ससमय-सम्भावो पर-समय-संकहाहि वाउलिद-चित्तो मा मिच्छत्तं गच्छेज्ज त्ति तेण तस्स विक्खेवणीं मोत्तण सेसाओ तिण्णि वि कहाओ कहेयव्वाओ। तदो गहिदसमयस्स उवलद्धपुण्णपावस्स जिण-सासणे अढि-मज्जाणुरत्तस्स जिण-वयण-णिव्विदिगिच्छस्स भोग-रइ-विरदस्स तव-सील-णियम-जुत्तस्स पच्छा विवखेवणी कहा कहेयव्वा । एसा अकहा वि पण्णवयंतस्स परूवयंतस्स तदा कहा होदि । तम्हा पुरिसंतरं पप्प समरण कहा कहेयव्वा । पण्हादो हद-गढ-मुट्ठि-चिन्ता-लाहालाह-सुह-दुक्ख-जीविय-मरण-जयपराजय-णाम-वव्वायुसंखं च परूवेदि ।
विवागसुत्त णाम अंगं एग-कोडि-चउरासीदि-लक्ख-पदेहि १८४००००० पुण्ण: पाव-कम्माणं विवायं वयेदि ।
एक्कारसंगाणं सव्व-पद-समासो चत्तारि कोडीओ पण्णारह-लषखा-बे-सहस्सं च ४१५०२०००।
-षट्खण्डागम, खण्ड १, भाग १, पुस्तक १, पृ० ९९-१०७
१. ....... द्विमेवमनेकभेवं द्वादशभेदमिति । द्विभेदं तावत्-अङ्गबाह्यमङ्गप्रविष्टमिति ।
अङ्गबाह्यमनेकविघं वशवकालिकोत्तराध्ययनादि । अङ्गप्रविष्टं द्वादशविधम् । तद्यथा१. आचारः, २. सूत्रकृतम्, ३. स्थानम्, ४. समवायः, ५. व्याख्याप्रज्ञप्तिः, ६. ज्ञातृधर्मकथा, ७. उपासकाध्ययनम्, ८. अन्तकृशम्, ९. अनुत्तरौपपादिकदशम्, १०. प्रश्न व्याकरणम्, ११. विपाकसूत्रम्, १२. दृष्टिवाद इति ।
-सत्त्वाचं सूत्र सर्वार्थसिद्धि वृत्ति
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