Book Title: Agam aur Tripitak Ek Anushilan Part 2
Author(s): Nagrajmuni
Publisher: Arhat Prakashan
View full book text
________________
भाषा और साहित्य ]
शौरसेमी प्राकृत और उसका वाङमय
[५९९
सत्त्वार्थ सूत्र की सर्वार्थसिद्धि वृत्ति में प्राचार्य पूज्यपाद ने भी अग-बाह्य तथा अंग
उवासयज्झयणं णाम अंग एक्कारस-लक्ख-ससरि-सहस्स-पदेहि ११७०००।
वंसण-बद-सामाइय-पोसह-सच्चित्त-राहभत्ते य ।
बम्हारंभ-परिग्गह-अणुमण-उद्दिट्ट-देसविरदी य ॥ ७४ ।। इदि एक्कारसविह-उवासगाणं लक्खणं तेसिं चेव वदरोवणविहाणं तेसिमाचरण च वम्णेवि।
अंतयडदसा णाम अंगं तेबीस-लक्ख-अट्ठाबीस-सहस्सपदेहि २३२८००० एक्केक्कम्हि य तित्थे दारणे बहुविहोवसग्गे सहिऊण पाडिहेरं लळूण णिव्वाणं गदे बस दस वष्णेदि । उक्तं च तत्त्वार्थ भाष्ये
संसारस्यान्तः कृतो यैस्तेऽन्तकृतः नमिमतङ्ग-सोमिल-रामपुत्र-सुदर्शन-यमलोकवलीक-किष्किविल-पालम्बाष्टपुवा इति एते दश वर्द्धमान-तीर्थकर-तीर्थे । एवमृषभादोनां योविंशतेस्तीर्थेष्वन्येऽन्ये, एवं दश दशानगारा दारुणानुपसर्गाग्निजित्य कृत्स्नकर्मसयादन्तकृतो दशास्यां वर्ण्यन्त इति अन्तकृद्दशा ।अणुत्तरोववादियदसा णाम अंगं वाणउदि-लक्ख-चोपाल-सहस्स पदेहि ९२४४००० एको कम्हि य तित्थे दारुणे बहुविहोवसग्गे सहिऊण पाडिहेरं लद्ध ण अगुत्तर-विमाणं गदे दस दस वण्णेवि । उक्तंच तत्त्वार्थ भाष्ये
उपपादो जन्म प्रयोजनमेषां त इमे औपपादिकाः, विजय-वैजयन्त-जयन्तापराजितसर्वार्थसिद्धाख्यानि पंचानुत्तराणि । अनुत्तरेष्वौपपादिका अनुत्तरौपपादिकाः, ऋषिदासधन्य-सुनक्षत्र-कार्तिकेयानन्द-नन्दन-शालिभद्राभय-वारिषेण-चिलातपुत्रा इत्येते दश बर्द्धमानतीर्थकरतीर्थे । एवमृषभावीनां त्रयोविंशतेस्तीर्थेष्वन्येऽन्ये एवं दश दशानगारा वारुणानुपसर्गानिजित्य विजयाद्यनुत्तरेधूत्पन्ना इत्येवमनुत्तरौपपादिका दशास्यां वर्ण्यन्त इत्युनुत्तरोपपादिकदशा।
पण्हावायरणं णाम अंगं तेणउदि-लक्ख-सोलह-सहस्स पदेहि ९३१६००० अक्खेवणी णिक्खेवणी संवेयणी णिव्वेयणी चेदि चउविहाओ कहाओ वण्णेदि । तत्थ अक्खेवणी णाम छ-दृश्य-णव-पयत्थाणं सरूवं दिगंतर-समयांतर-णिराकरणं सुद्धि करेंती परूवेदि । विक्खेवणी णाम पर-समएण स-समयं दूसंती पच्छा दिगंतर-सुद्धि करेंती परूवेदि । विश्खेवणी णाम पर-समएण स-समयं दूसंती पच्छा दिगंतर-सुद्धि करेंती परूवेदि । स-समयं थावतो छ-दृश्व-णव-पयत्थे परुवेदि । संवेयणी णाम पुण्ण-फल-संकहा । काणि
Jain Education International 2010_05
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Page Navigation
1 ... 647 648 649 650 651 652 653 654 655 656 657 658 659 660 661 662 663 664 665 666 667 668 669 670 671 672 673 674 675 676 677 678 679 680 681 682 683 684 685 686 687 688 689 690 691 692 693 694 695 696 697 698 699 700 701 702 703 704 705 706 707 708 709 710 711 712 713 714 715 716 717 718 719 720 721 722 723 724 725 726 727 728 729 730 731 732 733 734 735 736 737 738 739 740