Book Title: Agam aur Tripitak Ek Anushilan Part 2
Author(s): Nagrajmuni
Publisher: Arhat Prakashan

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Page 722
________________ ६७२ ।] आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन [ खण्ड २ अर्थों में निर्ग्रन्थ शब्द का प्रयोग गरिणपिटक में भी ज्यों-का-त्यों देखा जाता है । भगवान् महावीर के प्रवचन को भी निर्ग्रन्थ- प्रवचन कहा गया है । युग्गल - पुद्गल शब्द का प्रयोग जैन और बौद्ध परम्परा के अतिरिक्त अन्यत्र कहीं महीं देखा जाता है । जैन परम्परा में इसका मुख्य श्रथं रूपी जड़ पदार्थ है । बौद्ध परम्परा में पुद्गल शब्द का अर्थ है - प्रात्मा, जीव । 1 जैनागमों में जीव-तत्त्व के अर्थ में पुद्गल शब्द आया है ।" गौतम स्वामी के प्रश्न पर भगवान् महाबीर ने जीव को पुद्गल कहा है । अर्हत और बुद्ध - वर्तमान में अर्हत् शब्द जैन परम्परा में और बुद्ध शब्द बौद्ध परम्परा में रूढ़ जैसा बन गया है । वस्तुस्थिति यह है कि जैनागमों में अर्हतु और बुद्ध अपने श्लाघ्य पुरुषों के लिए अपनाये गये हैं और बौद्ध आगमों में भी अपने श्लाघ्य पुरुषों के लिए | जैनागमों की प्रसिद्ध गाथा है— जय बुद्धा अतिकन्ता । जेये बुद्धा अणागया । 1 बौद्ध परम्परा की सुविदित गाथा हैं— ये बुद्धा अतीता च ये च बुद्धा अनागता । पचपन्ना व ये बुद्धा अहं वंदानि ते सदा । जैनागमों में और भी अनेक स्थानों पर बुद्ध, सम्बुद्ध, संयबुद्ध आदि शब्दों का प्रयोग मिलता है । तित्थगराणं सयं सम्बुद्धाणं । 5 तिविहा बुद्धा - णाण बुद्धा, दंसण बुद्धा, चरित बुद्धा । समरणं भगवया महावीरेणं आइगरेणं तित्थयरेणं सयं संबुद्ध णं । १. मज्झिम निकाय, ११४ २. भगवती सूत्र, शतक २०-३-२ ३. वही, ८-३-१० ४, सूत्रकृतांग सूत्र, १-१-३६ ५. रायपसेणइयं, ५ ६. स्थानांग सूत्र, ठा० ३ ७. समवायांग सूत्र, २२ Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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