Book Title: Agam aur Tripitak Ek Anushilan Part 2
Author(s): Nagrajmuni
Publisher: Arhat Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 726
________________ ६७६ ] आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन : १ होता है, न प्रत्युपकारक । यह इसलिए कि माता-पिता का पुत्र पर बहुत उपकार होता है। जैनागमों ने धार्मिक सहयोग को उऋण होने का प्राधार माना है। ___ यो अरिहन्त—जैनागमों की सुदृढ़ मान्यता है-भरत आदि एक ही क्षेत्र में एक साथ दो तीर्थकर नहीं होते। बुद्ध कहते हैं-भिक्षुप्रो ! इस बात की तनिक भी गुजाइश नहीं है कि एक ही विश्व में एक ही समय में अर्हत् सम्यग् संबुद्ध पैदा हों। __ स्त्री-अर्हत्, चक्रवर्ती शब्द-जैनों की मान्यता है ही कि अर्हत्, चक्रवर्ती, इन्द्र आदि स्त्री-भव में कभी नहीं होते । बुद्ध कहते हैं-भिक्षुप्रो, यह तनिक भी सम्भावना नहीं हैं कि स्त्री-अर्हत् चक्रवर्ती व शुक्र हो । श्वेताम्बर आम्नाय के अनुभार मल्ली स्त्री तीर्थंकर थी, पर वह कभी न होने वाला आश्चर्य था । १. अंगुसर निकाय २. वही ३. वही ____Jain Education International 201005 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 724 725 726 727 728 729 730 731 732 733 734 735 736 737 738 739 740