Book Title: Agam aur Tripitak Ek Anushilan Part 2
Author(s): Nagrajmuni
Publisher: Arhat Prakashan

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Page 714
________________ ६६४] मागम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन व स्वोदयबन्धात्मक तथा परोदयबन्धात्मक प्रकृतियां कौन-कौनसी हैं, इत्यादि । ड । २ इत्यादि। বাঘা অথও चौथा खण्ड वेदना संज्ञा से अभिहित है। यह कर्मप्रकृति पाहुड़ के कृति तथा वेदना नामक अनुयोगद्वारों के आधार पर सृष्ट है। इसमें बेदना के विवेचन की मुख्यता है, जो काफी विस्तारपूर्वक किया गया है। इसी कारण यह वेदना खण्ड के रूप में संशिस हुमा है । कृति के अन्तर्गत प्रौदारिक, वैक्रिय, आहारक, तेजस् तथा कार्मण-इन पांच शरीरों की संघातनास्मक एवं परिशातनात्म कृति का एवं भव के प्रथम व अप्रथम समय में अवस्थित जीवों के कृति, नो कृति तथा अव्यक्त-एतद् प संख्याओं का वर्णन है । यहां कृति के सात प्रकार निरूपित हैं, जो इस प्रकार हैं१. नाम, २. स्थापना, ३. द्रव्य, ४. गणना, ५. ग्रन्थ, ६. करण तथा ७. भाव । प्रस्तुत सन्दर्भ में 'गणना' की मुख्यता प्रतिपादित की गई है । वेदना के अन्तर्गत सोलह अधिकार हैं, जो निम्नांकित हैं : . १. निक्षेप, २. नय, ३. नाम, ४. द्रव्य, ५. क्षेत्र, ६. काल, ७. भाव, ८. प्रत्यय, ९. स्वामित्व, १०. वेदना, ११. मति, १२. अनन्तर, १३. सन्निकर्ष, १४. परिमाण, १५. भागाभागानुगम तथा १६. अल्पबहुत्वानुगम । एतन्मूलक अपेक्षाओं से यहां वेदना का विवेचन किया गया है। বাবা বথঙ पांचवां वर्गणा खण्ड है । कर्मप्रकृति पाहुड़ के स्पर्श, कर्म तथा प्रकृति नामक अनुयोगद्वारों व बन्धन नामक अनुयोगद्वार के प्रथम भेद बन्ध के आधार पर इसका सर्जन हुआ है। स्पर्श-निरूपण के अन्तर्गत निक्षेप, नय, नाम, द्रव्य, क्षेत्र आदि सोलह अधिकार, जो वेदना-खण्ड में वरिणत हुए हैं, द्वारा तेरह प्रकार के स्पर्शों का विवेचन किया गया है तथा प्रस्तुत सन्दर्भ में कर्म-स्पर्श की प्रयोजनीयता का कथन किया गया है । कर्म के अन्तर्गत उपर्युक्त सोलह अधिकारों द्वारा दशविध कर्म का निरूपण है । वे दश कर्म इस प्रकार हैं-१. नाम, २. स्थापना, ३. द्रव्य, ४. प्रयोग, ५. समवधान, ६. अधः, ७. ईर्यापथ, ८. तप, ९. क्रिया तथा १०. भाव । ___Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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