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मामा और साहित्य]
शौरसेनी प्राकृत और उसका बारमय
पाप के फल का वर्णन करने वाली कथा को निवेदनी कथा कहते हैं। शंका–पाप के फल कौन से हैं ?
समाधान-नरक, तिथंच तथा कुमानुष की योनियों में जन्म, जरा, मरण, ध्याधि, वेदना एवं दारिद्रन आदि प्राप्त होना पाप के फल हैं।
अथवा संसार, शरीर तथा भोगों में वैराग्य उत्पन्न करने वाली कथा निवेदनी कथा कही जाती है । कहा भी है : तत्वों का निरूपण करने वाली प्राक्षेपणी कथा है । यथार्थ तत्व से भिन्न दिशा को प्राप्त हुई दृष्टियों का शोधन कर अर्थात् पर-समय की ऐकान्तिक दृष्टियों का शोधन कर स्व-समय की स्थापना करने वाली विक्षेपणी कथा है। विस्तार से थर्म का फल-वर्णन करने वाली संवेगिनी कथा है। वैराग्य उत्पन्न करने वाली निवेगिनी कथा है।
इन कथाओं का प्रतिपादन करते समय, जो जिन-वचन को नहीं जानता-जिसका जिन-वचन में प्रवेश नहीं है, ऐसे पुरुष को विक्षेपणी कथा का उपदेश नहीं करना चाहिए; क्योंकि जिसने स्व-समय के रहस्य को नहीं जाना है, पर-समय का प्रतिपादन करने वाली कथानों के सुनने से व्याकुल-चित्त होकर वह कहीं मिथ्यात्व स्वीकार न कर ले-एतदर्थ स्वसमय का रहस्य नहीं जानने वाले पुरुष को विक्षेपणी कथा उपदेश न देकर शेष तीन कथानों का उपदेश देना चाहिए । उत्त तीन कथानों द्वारा जिसने स्व-समय को भली-भांति समझ लिया है, जो पुण्य और पाप के स्वरूप को जानता है, जिन-शासन में जिसकी अस्थि और मज्जा तक अनुरक्त है, जिन-वन्दन में जिसके किसी प्रकार की विचिकत्सा-शंकासन्देह नहीं है जो भोगानुरक्ति से विरक्त है, जो तप, शील एवं नियमों से युक्त है, इस प्रकार के पुरुष को विक्षेपणी कथा का उपदेश करना चाहिए । यो प्ररूपणा करने वाले के लिए और प्रज्ञापित होने वाले के लिए यह अकथा कथा हो जाती है । अतः पुरुष को देख कर ही श्रमण को कथा का उपदेश करना चाहिए।
यह प्रश्न-व्याकरण नामक अंग प्रश्नानुरूप हत, नष्ट, मुष्टि, चिन्ता, लाभ, अलाभ, सुख, दुःख, जीवित, मरण, जय, पराजय, नाम, द्रव्य, आयु तथा संख्या का भी प्ररूपण करता है।
विपाक सूत्र नामक अंग एक करोड़ चौरासी लाख पदों के द्वारा पुण्य तथा पाप-रूप कर्मों के फलों का वर्णन करता है। ग्यारह अंगों के कुल पदों की जोड़ चार करोड़ पन्द्रह
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