Book Title: Agam aur Tripitak Ek Anushilan Part 2
Author(s): Nagrajmuni
Publisher: Arhat Prakashan

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Page 704
________________ ६५४ ] आगम और faftee : एक अनुशीलन जोणिपाहुड भाठ सौ श्लोक -प्रमाण प्राकृत गाथाओं में है । उल्लेख है कि इसे कूस्माण्डिनी महादेवी से उपलब्ध कर आचार्य धरसेन ने अपने अन्तेवासी पुष्पदन्त और भूतबलि के लिए लिखा । जोणिपाहुड के सम्बन्ध में धवला में भी चर्चा है। वहां उसे मंत्र-तंत्र शक्तियों तथा पुद्गलानुभाग का विवेचन ग्रन्थ बताया है । वहट्टियशिका में उल्लेख एक श्वेताम्बर जैन मुनि ने विक्रमाब्द १५५६ में वृहट्टिप्पणिका के नाम से श्वेताम्बर एवं दिगम्बर — यथासम्भव सभी जैन विद्वानों के ग्रन्थों की सूची तैयार की। उसमें उन्होंने अपने समय तक के सभी लेखकों की सब विषयों की कृतियों को समाविष्ट करने का प्रयत्न किया है । जोणिपाहुड की भी वहां चर्चा है । वृहट्टिप्पणिकाकार ने उसे प्राचार्य धरसेन द्वारा रचित बताया है तथा उसका रचना काल वीर - निर्वारण सं० ६०० सूचित किया है । वृहट्टप्पणिका की प्रामाणिकता में सन्देह की कम गुंजाइश है । फिर एक श्वेताम्बर मुनि द्वारा एक दिगम्बर मुनि के ग्रन्थ के सम्बन्ध में किया गया सूचन अपने प्राप में विशेष महत्व रखता है । नन्दिसंघ की प्राकृत-पट्टावली, जिस पर पिछले पृष्ठों में विस्तार से चर्चा की गई है, के अनुसार माघनन्दि का काल वीर निर्वारण सं० ६१४ में समाप्त होता है, तत्पश्चात् धरसेन का काल प्रारम्भ होता है । वृहट्टिष्पणिका और प्राकृत- पट्टावली के काल सूचन के सन्दर्भ से ऐसा प्रकट होता है कि धरसेन ने प्राचार्य पदारोहरण से चवदह वर्ष पूर्व इस ग्रन्थ की रचना की हो । इस कोटि के जटिल ग्रन्थ की रचना करने के प्रसंग तक वे अवस्था में प्रोढ़ नहीं तो युवा अवश्य रहे होंगे । भाण्डारकर ओरिएण्टल रिसर्च इन्स्टीट्यूट, पूना (महाराष्ट्र) के ग्रन्थ-भण्डार में जोणिपाहुड की एक हस्तलिखित प्रति है, जिसका लेखक- काल वि० सं० १५८२ है । জীशgs : मंग - क यह ग्रन्थ मंत्र-विद्या, तंत्र-विज्ञान श्रादि के विश्लेषण - विवेचन की दृष्टि से बड़ा महत्वपूर्ण समझा जाता है । दिगम्बर तथा श्वेताम्बर - दोनों जैन सम्प्रदायों में यह समाहत रहा है । डा० जगदीशचन्द्र जैन ने इसके सम्बन्ध में जो सूचक तथ्य उपस्थित किये हैं, उन्हें यहां उद्धृत किया जा रहा है : "निशीथ पूणि (४, पृ० ३७५ साइक्लोस्टाइल प्रति ) के कथनानुसार आचार्य सिद्धसेन ने जोणिपाहुड के आधार से अश्व बनाये थे, इसके बल से Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org 20chiv

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