Book Title: Agam aur Tripitak Ek Anushilan Part 2
Author(s): Nagrajmuni
Publisher: Arhat Prakashan

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Page 676
________________ ६३६ मागम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन हैं। उनमें एक गुरु-वसदि के नाम से विख्यात है, जो सबसे मुख्य है। इसी में धवल, जयधवल और महाधवल की ताड़पत्रीय प्रतियां सुरक्षित हैं। इन सिद्धान्त ग्रन्थों के यहा रखे रहने से इसका दूसरा नाम सिद्धान्त-वसवि भी है। मुखबिद्री का अभ्युदय : अभिवद्धि होयसल वंश में ११वीं शती के आस-पास वल्लालदेव (प्रथम) नामक राजा हुआ । उसके शासन-काल में मूडबिद्री के प्रभाव तथा गौरव की वृद्धि प्रारम्भ हुई। तेरहवीं ईसवी शती में तुलुन के आलूप-नरेशों ने इस नगर की प्रतिष्ठा को आगे बढ़ाया। यहां के पार्श्वनाथ-बसदि संज्ञक जिन-मन्दिर को उन्होंने राज्य-सम्मान प्रदान किया। पन्द्रहवीं ईसवी शती में विजयनगर के नरेशों के शासन-काल में इसकी गरिमा की अभिवृद्धि हुई । यद्यपि विजयनगर के राजा हिन्दू-धर्मानुयायी थे, पर, जैन धर्म के प्रति भी उनका पर्याप्त प्रादर था । विजयनगर के शासक देवराय द्वितीय का १४२९ ईसवी का एक शिलालेख है। उसमें इस नगर की चर्चा है। यह नगर वेणुपुर के नाम से भी पहचाना जाता था । उस शिलालेख में जो उल्लिखित हुआ है, उसका आशय है कि वेणुपुर या मूडबिद्री के लोग बड़े भव्य हैं। वे शुद्ध चरित्र का पालन करते हैं पवित्र कार्य करते हैं । वे जैन धर्म के प्रति श्रद्धावान् हैं । जो कथाएं सुनते हैं। यहां की वसदियों में एक होस-वसदि है। उसे 'त्रिभुवन-तिलक-चूड़ामणि' कहा जाता है । इसका 'भैरादेवीमण्डप'-मुख्य मण्डप विजयनगर-नरेश मल्लिकार्जुन इम्मडिदेवराय के शासन काल में निर्मित हुआ। और भी अनेक वंशों के राजाओं तथा श्रेष्ठी-जनों ने इस नगर की प्रशस्ति और गरिमा को आगे बढ़ाया । प्राकृत अपभ्रंश के सुप्रसिद्ध विद्वान्, षट्खण्डागम के यशस्वी सम्पादक स्वर्गीय डा० हीरालाल जैन ने षट्खण्डागम की प्रस्तावना में इस सम्बन्ध में चर्चा की है। मूडबिद्रीनिवासी पं० लोकनाथ शास्त्री ने उन्हें इस सम्बन्ध में कुछ जानकारी दी थी। उसके अनुसार मूडबिद्री, जो कन्नड-नाम है, के अर्थ व एतत्सम्बद्ध इतिवृत्ति आदि का संकेत कर रहे हैं। যবিহলথ 'मूवित्री' नाम में दो शब्द हैं-मूड और विदुरे । कन्नड़ भाषा में बांस को 'विविर' Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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