________________
३४८ ]
आगम और त्रिपिटक : एक अनुशोलन
[ खण्ड : २
अपने को सुगमता से मुक्त कर सकता हूं । पर, जब मैं पांचों इन्द्रियों के भोगों में आसक्त और ग्रस्त हो जाऊंगा, तब जिस प्रकार वह बन्दर दुःख से मया, क्या मैं भी जन्म-मरण का भावो नहीं बनूंगा ? मैं मौत के भय से विभीत हूं । प्रव्रज्या की आज्ञा चाहता हूं।"
जम्बू कुमार के कथन पर माता कहण क्रन्दन करने लगी। उसने कहा - " पुत्र ! मेरो चिरकाल से यह अभिलाषा यही है कि मैं वय-वेश में तुम्हारा मुख देखूं, पर तुमने ऐसा निश्चय कर लिया है, जो मेरे मनोरथ की सिद्धि के प्रतिकूल है । यदि तुम मेयी अभिलाषा पूरी करोगे, तो में भो तुम्हारे साथ-साथ दीक्षा ग्रहण कर लूंगी ।"
जम्बू ने कहा - "मां ! यदि आपको ऐसो उत्कण्डा है, तो बहुत सुन्दर है । मैं आपके वचन का प्रतिपालन करूंगा। पर, उस शुभ वेला के व्यतीत हो जाने पर आप मुझे नहीं योकेंगी।"
माता परितुष्ट हो गयो। कहने लगी, जैसा तुम कहते हो, वैसा ही होगा । उसने आगे कहा - " जम्बू ! पहले से हो आठ श्रेष्ठि-कन्याओं का तुम्हारे लिये वाग्दान हो चुका है । यहीं निवास करने वाले सुमुद्रप्रिय, समुद्रदत, सागरादत, कुत्रे यदत, कुत्रे रसेन, वैश्रमणदत्त, वसुसेन तथा वसुपाल नामक सार्थवाह हैं। जिन शासन में उनका अनुराग है। पद्मावतो, कनकमाला, बिनयत्री, वनश्री, कनकबती, श्रीसेना, हीमतो तथा जयसेवा नामक क्रमशः उनको पत्नियां हैं। समुद्रश्री, सिन्धुमती, पद्मश्री, पद्मसेना, कन हत्री, विजयत्री, कमलावतो तथा यशोमती नामक उनको पुत्रियां हैं। ये कन्याएं तुम्हारे अनुवा हैं । तुम्हारे से इनके पाणिग्रहण का पहले से ही निश्चय किया हुआ है, इसलिए यह आवश्यक है कि उनके पिताओं को यह सब कहलाएं "
जम्बू के माता-पिता की ओर से कन्याओं को सन्देश प्रेषित किया गया कि कुमार जम्बू का ऐसा निश्चय है कि वे विवाह सम्पन्न होते ही संयम ग्रहण कर लेंगे । इस पर आप लोगों का क्या विचार है ?
सार्थवाहों ने ज्यों ही यह सुना, उनका मन विषण्ण हो गया तथा अनतो पक्षियों के साथ इस सम्बन्ध में वे विचार-विमर्श करने लगे । उनको कन्याओं ने वह वार्तालाप सुन लिया । सभी कन्याओं ने एक जैसा हो निश्चय किया और कहा - "आपने हमें (वचन द्वारारा) कुनाय जम्बू को दे दिया है। धर्मतः वे हो हमारे स्वामी हैं । वे जैसा करेंगे, जैसे मार्ग को ग्रहण करेंगे, हमारा भी वहो पथ होगा ।" कन्याओं का इस प्रकार निश्चित अभिप्राय जान कर उनके पिता - सार्थवाहों ने श्रेष्ठी ऋषभदत्त के पास वह संवाद भेज दिया । दिगम्बर-परम्पा में आठ के स्थान पर चाय कन्याओं का उल्लेख है ।
Jain Education International 2010_05
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org