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आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
[ खण्ड : २
आचार्य भद्रबाहु का स्वर्गवास हुआ । वीर निर्वाण १८४ में चन्द्रगुप्त की मृत्यु हुई । पर तित्थोगाली पन्ना तथा दुःखमाकालश्रीश्रमणसंघस्तव की तुलना में हिमवत् थेरावली की प्रामाणिकता संदिग्ध है ।
गवेषक विद्वानों का ऐसा चिन्तन है कि श्राचार्य हेमचन्द्र ने परिशिष्ट पर्व में चन्द्रगुप्त के राज्यारोहण का जो समय दिया है, वहां उन्हें काल-गणना में कुछ भ्रान्ति हुई है । वीर निर्वाण के पश्चात् ६० वर्ष तक जो पालक का राज्य रहा, सम्भवतः श्राचार्य हेमचन्द्र की गणना में वह छूट गया । 1 उन्होंने सीधे नव नन्दों के १५५ ले लिये और तदनुसार चन्द्रगुप्त के राज्याभिषिक्त होने का उल्लेख कर दिया ।
सारांश
चन्द्रगुप्त मौर्य ने वीर निर्वारण २१५ तदनुसार ३१२ ई० पूर्व में नन्द वंश का विध्वंस कर राज्य प्राप्त किया । चन्द्रगुप्त के महान् पौत्र अशोक के राज्याभिषेक का समय ऐतिहासिक दृष्टि से स्पष्ट है, जो ई० पूर्व २६९ है । चन्द्रगुप्त और अशोक के बीच ४३ वर्षों का शासन-काल श्राता है, जिसमें १८ वर्ष चन्द्रगुप्त ने राज्य किया तथा २५ वर्ष बिन्दुसार ने ऐसा माना जाता है। इस प्रकार चन्द्रगुप्त का काल ( राज्यारोहण वीर निर्वारण २१५ + राज्य काल १८ ) = वीर निर्वारण २३३ में समाप्त होता हैं ।
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दु:षमाकालश्रीश्रमणसंछस्तव में मौर्य - राज्य में आचार्य महागिरि का संधाधिपत्यकाल ३० वर्ष बताया गया है । तदनुसार आचार्य महागिरि वीर निर्वारण संवत् २१५ से वीर निर्वारण संवत् २४५ तक संघाधिपति के पद पर रहते हैं । चन्द्रगुप्त मोर्य का शासन - काल इसी में आ जाता है, जिससे यह सिद्ध होता है कि चन्द्रगुप्त मौर्य आचार्य महागिरि के समसामयिक थे, न कि आचार्य भद्रबाहु के 1
दो दृष्टिको
पिछसे पृष्ठों में दिगम्बर श्वेताम्बर के रूप में जैन श्रमण संघ के विभक्त होने के सन्दर्भ में दोनों परम्पराओं के विचार, कथानक आदि उपस्थित किये गये हैं । जैसा कि बताया गया है, दोनों ओर के वर्णन श्राग्रह तथा अभिनिवेश से मुक्त नहीं है । अब हम इस सन्दर्भ में प्राप्त वाङ् मय के आधार पर समीक्षा की दृष्टि से कुछ श्रोर विचार करेंगे ।
1. Hemchandra must have ommitted by oversight to Count the Period of sixty years of Kinga Palaka after mahavira. --Epitome of Jainism Appendix A, Page IV
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