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भाषा और साहित्य शौरसेनी प्राकृत और उसका वाङ्मय ५२
"वीर-निर्वाण सं० १५०० में गौतम गोत्रोत्पन्न, आत्म-बल के महान् धनी श्रमण फल्गुमित्र के स्वर्गवास के साथ वशाब तस्कन्ध विच्छिन्न हो जायेगा, ऐसा कहा गया है।"
"वीर-निर्वाण सं० १९०० में भारद्वाज गोत्रोत्पन्न महाश्रमण नामक मुनि के पश्चात् सूत्रकृतांग का व्युच्छेद हो जायेगा।""
"वीर-निर्वाण सं० २००० में हारीत गोत्रोत्पन्न विष्णु नामक मुनि के मरणोपरान्त आचारांग का व्युच्छेद हो जायेगा।"
"तदनन्तर दुःषमा संज्ञक इस पांचवें आरे के शेष काल अर्थात् उसके समाप्त होने में थोड़ा-सा समय बाकी रहने पर दुःप्रेसह नामक श्रमण होंगे । वे क्षमा, तप आदि गुणों से शोभित होंगे। भारतवर्ष में वे मन्तिम आचारांगधर होंगे। उनके देहावसान के साथ आचारांग सूत्र और चारित्र निःशेष हो जायेंगे-मूलतः उच्छिन्न हो जायेंगे ।
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१. मणिबो बसाण छेदो, पनरससएहि होइ वरिसाणं । समणम्मि फग्गुमित, गोयमगोत महासत्ते ॥
-तित्थोगालीपन्ना, गा० ८१३ २. भारहायसगुत, सूयगडंग महासमण नामे । अगुणम्वीससतेहि, जाही वरिसाण वोच्छित्ति ॥
-वही, गा० ८१४ ३. विण्तुमुणिम्मि मरते, हारित गोत्तम्मि होति वीसाए। बरिसाण सहस्सेहि, आपारंगस्स वोच्छेदो ॥
-वही, गा० ८१६ ४. (क) अह दुसमाए सेसे, होही नामेण दुप्पसह समणो ।
भणगारो गुणगारो, खमागारो तवागारो॥ सो किर आयारधरो, अपच्छिमो होहीति भरहवासे । तेण समं आयारो, निस्सीही समं चरित्तण ॥
-वही, गा० ८१७-१८ () तित्थोगालीपाइन्ना की ८१६वीं तथा ८१७वीं गाथा में आचारांग के विच्छिन्न होने
के सन्दर्भ में जो कहा गया है, उसका आशय यों समझा जाना चाहिए कि वीरनिर्वाण सं० २०००० में हारीतमोतीय विष्णु मुनि के स्वर्गवास के साथ भाचाररांग अंशतः - विक्छिन होगा तथा वीर-निर्वाण सं० २१००० में श्रमण प्रसह के बेहावसान के साथ वह सर्वथा उच्छिन्न हो जायेगा।
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