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भाषा और साहित्य ] शौरसेनी प्राकृत और उसका बारमय [५१ उदाहरणार्थ, प्रमेय- मल-मार्तण्ड तथा न्याय-कुमुद चन्द्र आदि ग्रन्थों के रचयिता, सुप्रसिद्ध नैयायिक दिगम्बर प्राचार्य प्रभाचन्द्र (९२५-१०२३ ई०) ने अपने ग्रन्थों में स्त्री-मुक्ति तथा केवलि-भुक्ति के प्रसंग में प्रायः इसी ग्रन्थ के प्रकरणों को सामने रखा।
कुछ महत्वपूर्ण पहल
शाकष्टायन ने अपने ग्रन्थ में विवेच्य विषयों के निरूपण, विश्लेषण तथा पोषण आदि के सन्दर्भ में जो श्वेताम्बर-आगमों के पाठ उद्धृत किये हैं, वे कहीं-कहीं श्वेताम्बरों के प्राप्त पाठ से कुछ-कुछ भिन्न भी हैं। तदतिरिक्त अन्य यापनीय ग्रन्थकारों ने विविध प्रसंगों पर श्वेताम्बर प्रागमों के पाठ लिये हैं, वहां भी वैसा सम्भावित है। अनुसन्धातृ-विद्वानों के लिए यह महत्व का विषय है। इसमें से यह संभावना निकलती है कि यापनीयों द्वारा स्वीकृत तथा प्रयुज्यमान जो आगम-संस्करण थे, उनमें श्वेताम्बरों द्वारा स्वीकृत पागमों से कुछ पाठ-भेद रहा हो, परम्परा-भेद रहा हो। अच्छा हो, श्वेताम्बर प्रागमों पर कार्य करने वाले विद्वान इस पर गौर करें। हो सकता है, गवेषणात्मक अध्यवसाय से आगमपाठ की कोई भिन्न परम्परा प्राप्त हो जाये, जिससे अनेक नूतन तथ्य प्रकाश में आने संभावित हैं।
शाकटायन द्वारा अपने ग्रन्थ में और भी कतिपय ऐसे विषय उपस्थित किये गये हैं, जो श्वेताम्बर तथा दिगम्बर; दोनों परम्परामों में नहीं हैं। ये यापनीयों की अपनी विशेषताएं हैं।
उपधि' के सम्बन्ध में शाकटायन ने ओघ, अणु तथा औपनहिक के रूप में उसके तीन भेद किये हैं । इसमें दूसरे भेद अणु का सम्बन्ध केवल यापनीयों से ही प्रतीत होता है। यह
.१. अभिधान-राजेन्द्र में उपधि के दो भेद-ओघ तथा अवगह का वर्णन
ओहे उवग्गहम्मि य, दुविहो उवही उ होइ नायव्यो । एक्केक्को वि य दुविहो, गणणापमाणओ चेव । पारस चोद्दस पणवीस, उ य ओघोवधी मुणेयव्यो । जिणकप्पो थेराण य, अद्धाणं चेव कप्पम्मि । ओघोषधी जिणाणं, थेराणोहे अवग्गहो चेव । ओहोवधिमज्जाणं, उवग्गहिओ अण्णा तव्वो ॥
-अभिधान राजेन्द्र, भाग २, पृ० १०६०
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