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आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
खण्ड : २
“उस समय समस्त लोक में विश्रुत, धर्म- तीर्थ के प्रतिष्ठापक, राग-द्वेष-जयी भगवान् वर्धमान ( महावीर ) तीर्थंकर थे । लोक में धर्म का प्रकाश करने वाले भगवान् महावीर के शिष्य भगवान् गौतम थे, जो अत्यन्त कीर्तिशाली तथा ज्ञान व चारित्य में परम उज्ज्वल थे । वे द्वादश अंगों के वेत्ता थे, प्रबुद्ध थे । अपने शिष्यों सहित ग्रामानुग्राम विहार करते हुए श्रावस्ती नगरी में आये । " 1
"उस नगर के समीप कोष्ठक नामक उद्यान था, जिसमें प्रासुक स्थान देखकर वे हिं । परम यशस्वी श्रमण केशीकुमार तथा गौतम — दोनों, जो विजितेन्द्रिय एवं श्रात्म-समाधि युक्त थे, शान्त थे, उस नगरी में विचरण करने लगे। दोनों के शिष्य-वृन्द, जो संयत, तपस्वी तथा गुणी थे, में विचिकित्सा उत्पन्न हुई । " " (वे ऊहापोह करने लगे ।)
"हमारा धर्म कैसा है ? इनका धर्म कैसा है ? हमारा आचार, क्रिया-कलाप तथा मर्यादा किस प्रकार की है, इनकी किस प्रकार की है ? भगवान् पार्श्व ने जिस धर्म की देशना दी, वह चातुर्याममूलक है तथा भगवान् महावीर ने जो धर्मं उपदिष्ट किया, वह पंच शिक्षात्मक (पंच महाव्रतमूलक) है । "8
१. अह तेरणेव कालेणं, धम्मतित्थयरे जिले । भगवं वद्धमाणित्ति, सव्वलोगम्मि विस्सुए ॥ तस्स लोगपतीवस्स, आसि सीसे महायसे । भगवं गोयमे नामं, विज्जाचरणपारगे ॥ सीससंघसमाउले | गामायुगामं रीयंते, सेवि सावत्थिमागए ॥
मारसंगविबुद्ध,
२. कोट्ठगं नाम उज्जाणं, तम्मी नयरमण्डले । फासुए सिज्जसंथारे, तत्थ वासमुवागए || केसीकुमारसमरणे, गोयमे य महायसे । उमओ वि तत्थ विहरसु, अल्लीणा सुसमाहिया ॥ उमओ सीससंघाणं, संजयाणं तवस्तिणं । तत्थ चिन्ता समुप्पन्ना, गुणवन्ताण ताइणं ॥
३. केरिसो वा इमो धम्मो, इमो धम्मो थ केरियो । भायारधम्मपणिही, इमा वा सा व केरिसी ॥
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-उत्तराध्ययन सूत्र, २३.५-७
वही, २७.८-१०
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