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५६० मागम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
: परम्परा के उदात्त, व्यापक तथा प्रशस्त रूप की दृष्टि से यह जो हुआ, अच्छा नहीं हुआ। पर, कौने क्या करता ? उस समय कुछ ऐसे श्रमण रहें हों, जिनका मन इससे बहुत व्यथित हुआ हो। उन्हें लगा हो, जैन परम्परा की दो धाराएं जिस आधार पर पृथक् हुई हैं, कभी मिल न पायेंगी। उनके अनुसार वे दो अतिरेक थे, जिन्हें इन पृथग्भूत धाराओं ने पकड़ लिया था। उनमें एक था- ग्यारह अंगों के रूप में प्राप्त भगवान् महावीर की परम्परा के महत्वपूर्ण वाङमय का सर्वथा अस्वीकार तथा दूसरा था-तपश्चर्या और वैराग्य के उदन के प्रतीक जिन-कल्प के विच्छेद की घोषणा।
यों चिन्तन करने वाले श्रमणों ने कुछ ऐसा व्यावहारिक प्रयत्न लोगों के समक्ष उपस्थित करने का सोचा हो, जिससे ये दोनों अतिरेक तिरोहित हो जायें। यह चिन्तन चलता रहा हो, और भी प्रबुद्ध लोग इस ओर आकृष्ट हुए हों।
यापनीय संघ का उद्भव
___उपर्युक्त रूप में चल रही चिन्तनधारा की परिणति अन्ततः यापनीय संघ के उद्भव के रूप में हुई। इसे प्रतिष्ठापित करने वालों ने समन्वय का एक अद्भुत रूप उपस्थित किया। उन्होंने वेष दिगम्बरों का अपनाया अर्थात् वे नग्न रहने लगे तथा अधिकांश श्वेताम्बर-आगमों को उन्होंने प्रामाणिक प्राप्त-वाणी के रूप में स्वीकार किया। उन्होंने देखा हो-वे जो अपना रहे हैं, वह मध्यम मार्ग है। इसमें दोनों अतिरेकों का समाधान है । परम्परा से प्राप्त महिमाशाली वाङमय की प्रतिष्ठा तथा रक्षा जहां इससे सधेगी, वहां उत्कृष्ट संयममय जीवन-सरणि विलय से बचेगी। यह घटना संघ-भेद के बहुत बाद की नहीं होनी चाहिए, ऐसा अनुमान है ।
इस सम्प्रदाय ने दिगम्बर एवं श्वेताम्बर–दोनों की कुछ-कुछ बातें लीं। फल यह हुआ, दोनों ही इसके विरोधी रहे । दिगम्बरों ने इसमें श्वेताम्बरों का ही प्रच्छन्न रुख देखा तथा श्वेताम्बर को इसमें दिगम्बरों से कोई विशेष भेद दृष्टिगत नहीं हुमा । यही कारण है, इसके उद्भव के सम्बन्ध में दोनों ही सम्प्रदायों में जो उल्लेख हुए हैं, वे पक्षपात से शून्य नहीं हैं । उनमें साम्प्रदायिक अभिनिवेश भी है। ____ यहां यह ध्यान देने योग्य है कि यापनीय संघ वह सम्प्रदाय है, जो बाह्य परिवेश में श्वेताम्बरों से सर्वथा भिन्न होते हुए भी उन द्वारा स्वीकृत अधिकांश आगमों में निष्ठा एवं विश्वास रखता है। उसके श्रमण अपने प्रव्रजित जीवन का आधार उन्हीं को मानते हैं। एतदर्थ इस प्रसंग में उनके सम्बन्ध में चर्चा करना उपयोगी होगा।
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