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भाषा और साहित्य ] आर्ष (अर्द्धमागधी) प्राकृत और आगम वाङमय
स्थानांग
१. मृगापुत्र अध्ययन
४. शकट अध्ययन
६. नन्दिषैरण अध्ययन
७. उम्बर अध्ययन
७. उदम्बर अध्ययन
तुलनात्मक विवेचन से ऐसा अनुमान असम्भाव्य कोटि में नहीं जाता कि विपाक श्रुत ( सूत्र ) का स्वरूप कुछ यथावत् रहा हो, कुछ परिवर्तित या शब्दान्तरित हुआ हो । अध्ययनों की क्रम स्थापना में भी कुछ भिन्नता आई हो ।
स्थानांग में दृष्टिवाद के पर्याय
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विपाक सूत्र प्रथम श्रुत-स्कन्ध
१. मृगापुत्र अध्ययन
४. शकट अध्ययन
६. नन्दि ( नन्दिषैण) अध्ययन
१२. दिवा ( दृष्टिवाद )
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पूर्वो के विवेचन-प्रसंग में दृष्टिवाद के विषय में संकेत किया गया है। इसे विच्छिन्न माना जाता है। स्थानांग सूत्र में इसके दश पर्यायवाची शब्दों का उल्लेख हुआ है : १. दृष्टिवाद, २. हेतुवाद, ३. भूतवाद, ४ तत्ववाद, ५. सम्यक्वाद, ६. धर्मवाद, ७. भाषाविजय, ८. पूर्वगत, ९. अनुयोगगत १०. सर्वप्राणभूतजीव सत्व सुखावह । समवायांग आदि में दृष्टिवाद के पांच भेदों का उल्लेख है : १. परिकर्म, २. सूत्र ३. पूर्वगत ४. अनुयोग ५. चूलिका ।
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स्थानांग सूत्र में दिये गये दृष्टिवाद के पर्यायवाची शब्दों में आठवां पूर्वगत है । यहाँ efष्टवाद के भेदों में तीसरा पूर्वगत है । अर्थात् पूर्वगत का प्रयोग दृष्टिवाद के पर्याय के रूप में भी हुआ है और उसके एक भेद के रूप में भी । दोनों स्थानों पर उसका प्रयोग
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क्योंकि दृष्टिवाद
साधारणतया ऐसा प्रतीत होता है, भिन्नार्थकता लिये हुए होना चाहिए; समष्ट्यात्मक संज्ञा है, इसलिये उसके पर्याय के रूप में प्रयुक्त पूर्वगत का यही अर्थ होता है, जो दृष्टिवाद का है । दृष्टिवाद के एक भेद के रूप में आया हुआ 'पूर्वगत' शब्द सामान्यतः दृष्टिवाद के एक भाग या अंश का द्योतक होता है, जिसका प्राशय चतुर्दश पूर्वात्मक ज्ञान है ।
शाब्दिक अर्थ की दृष्टि से दृष्टिवाद और पूर्वगत - चतुर्दश पूर्व-ज्ञान एक नहीं कहा जा सकता। पर, सूक्ष्म दृष्टि से विचार करना होगा । वस्तुतः चतुर्दश पूर्वों के ज्ञान की
१. दिट्टिवायरस गं दस नामधिज्जा प० त० दिट्टिवाएइवा हेतु बाएइवा भूयवाएइवा तच्चावाएइवा धम्मावाएइवा मासाविजयेइ वा पूव्व गएइवा अरणओगए इवा सव्वपाणभूजजीव सत्तसुहाव हेइवा ।
- स्थानांग सूत्र, स्थान १०, ७७
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