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साध्वी या आर्थिका के उपकर
जिन - कल्पी के लिए निर्देशित बाहर उपकरण, स्थविर - कल्पी के लिए निर्देशित दो अधिक उपकरणों में से एक — मात्रक; इन तेरह उपकरणों के अतिरिक्त निम्नांकित बारह अन्य उपकरण साध्वी या आर्थिका के लिए निर्दिष्ट किये गये प्राप्त होते हैं । उनके लिए कुल पच्चीस उपकरण हो जाते हैं । वे इस प्रकार हैं : १४. कमढग, १५ उग्गहांतग ( गुह्य अंग की रक्षा के लिए नाव की आकृति की तरह), १६. पट्टक ( उग्गहरणंतग को दोनों भोर से ढकने वाला जांघिये की आकृति की तरह), १७. अद्धोरुग ( उग्गहरांतग और पट्टक के ऊपर पहना जाने वाला ), १८. चलनिका (बिना सिला हुआ घुटनों तक पहना जाने वाला । बांस पर खेल करने वाले पहनते थे 1), १९. ब्भितर नियंसरणी ( यह आधी जांघों तक लटका रहता है । वस्त्र बदलते समय लोग साध्वियों का उपहास नहीं करते ।), २०. बहिनिसरणी (यह घुटनों तक लटका रहता है और इसे डोरी से कटि में बांधा जाता है), २१. कंचुक ( वक्षस्थल को ढांकने वाला वस्त्र), २२. उक्कच्छिय (यह कंचुक के समान होता है), २३. वेकच्छिय ( इससे कंचुक और उक्कच्छिय दोनों ढक जाते हैं), २४ संघाड़ी ( ये चार होती हैं -- एक प्रतिश्रय में, दूसरी व तीसरी भिक्षा श्रादि के लिए बाहर जाते समय और चौथी समवसरण में पहनी जाती थी), २५. खन्धकरणी ( चार हाथ लम्बा वस्त्र जो वायु आदि से रक्षा करने के लिए पहना जाता है । रूपवती साध्वियों को कुब्जा जैसी दिखाने के लिए भी इसका उपयोग करते थे।) 1 इन वस्त्रोपकरणों का स्वरूप, उपयोग, अपेक्षा, विकास प्रभृति विषय श्रमरण-जीवन के अपरिग्रही रूप तथा सामाजिकता के परिप्रेक्ष्य में विशेष रूप से अध्येतव्य है ।
व्याख्या - साहित्य
- नियुक्ति पर रचे गये व्याख्या - साहित्य में द्रोणाचार्य रचित टीका विशेष महत्व - पूर्ण है। उसकी रचना चूर्णि की तरह प्राकृत की प्रधानता लिए हुए है अर्थात् वह प्राकृतसंस्कृत के मिश्रित रूप में प्रणीत है । आचार्य मलयगिरि द्वारा वृत्ति की रचना की गयी ।
अवरि की भी रचना हुई ।
आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
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पक्खिय सुत्त (पाक्षिक-सूत्र )
आवश्यक सूत्र के परिचय तथा विश्लेषण के अन्तर्गत प्रतिक्रमण की चर्चा हुई है ।
१. नियुक्ति, ६७४-७७; भाष्य, ३१३-३२०
खण्ड : २
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