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आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
বিশ্বব-বংশৰ ম সবাই
दिगम्बर-साहित्य के परिशीलन से ज्ञात होता है कि इस परम्परा में भद्रबाह नाम के कई आचार्य हुए हैं, उनका संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है । প্রথম পৰাই
श्रत-कैवली भद्रबाहु प्रथम भद्रबाहु थे, जिनके सम्बन्ध में पीछे यथाप्रसंग प्रकाश डाला जा चुका है । तिलोयपण्णत्ती आदि ग्रन्थों के अनुसार उनके स्वर्गवास का समय वी. नि: सं० १६२ है । वे भगवान् महावीर के अाठवें पट्टधर थे। दिगम्बर परम्परा में ये तष्ट्य प्रायः सर्वसम्मत हैं।
द्वितीय भद्रबाहु
तिलोयपणती में श्रुत-ज्ञान के हीयमान-क्रम का वर्णन करते हुए, उन-उन श्रु तांगों के धारक प्राचार्यों का जो सूचन किया गया है, उसके अनुसार सुभद्र, यशोभद्ग, यशोबाहु एवं लोहार्य-ये चार आचारांगधर कहे गये हैं ।
१. (क) केवली–३
भुत-केवली-५ दशपूर्वधर-११ एकादश अंगधर-५ आचारांगधर-४
समय ६२ वर्ष समय १०० वर्ष समय १८३ वर्ष समय २२० वर्ष समय ११८ वर्ष
कुल समय ६८३ वर्ष
एकादश अंगधर तक का समय ५६५ वर्ष (ख) केवली-३
१. गौतम, २, सुधर्मा, ३. जम्बू श्रुत-केवली-५ १. नन्दि, २. नन्दिमित्र, ३. अपराजित, ४. गोवद्धन, ५. भद्रबाहु दशपूर्वधर-११ १. विशाख, २. प्रोष्ठिल, ३. क्षत्रिय, ४. ज', ५. नग, ६. सिद्धार्थ, ७. धृतिषण, ८. विजय, ९. बुद्धिल, १०. गंगदेव, ११. सुधर्म एकादश अंगधर-५ १. नक्षत्र, २. जयपाल, ३. पाण्डु, ४. ध्र वसेन, ५. कंस आचारांगधर-४ १. सुमन, २. पशोभन, ३. यशोबाहु, ४. लोहार्य
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