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भाषा और साहित्य शौरसेनी प्राकृत और उसका वाङमय महारानी का नाम चन्द्रश्री था। उनके एक कन्या उत्पन्न हुई, उसका नाम चन्द्रलेखा रखा गया।
उस कन्या ने अर्द्ध फालक मत के तथाकथित साधुओं से शास्त्र पढ़े। वह कन्या बुद्धि, रूप, लावण्य आदि अनेक गुण-युक्त थी।"
"सौराष्ट्र प्रदेश में वलभी नामक उत्तम नगर था। वहां प्रजापाल नामक नीतिज्ञ राजा था। उस राजा के तेज से उसके समस्त शत्रु परितप्त थे। उसकी महारानी का नाम प्रजावती था । वह उत्तम लक्षण-युक्त थी।
उसके लोकपाल नामक पुत्र था । वह सौम्य गुणों से परिपूर्ण था। वह रूपवान्, सौभाग्यशाली तथा ज्ञान-विज्ञान का पारगामी था।"
"राजा प्रजापाल ने उल्लासपूर्वक अपने पुत्र के लिए राजा चन्द्रकीति से उसकी उज्ज्वल गुण-युक्त पुत्री चन्द्रलेखा की मांग की। राजकुमार का उस नवयुवती राजकुमारी से विवाह हो गया । देवराज इन्द्र जिस प्रकार शची के साथ सुखोपभोग करता है, उसी प्रकार वह उसके साथ सांसारिक सुख भोगने लगा । यथाक्रम पिता का विशाल राज्य उसे प्राप्त हुआ।
१. एवं बहुतरे काले व्यतिक्रान्तेऽभवत्पुरे।
उज्जयिन्यां विशांनाथश्चन्द्रवत् चन्द्रकोतिभाक् ॥ चन्द्रभी श्रीरिवाज्याता तस्याप्रमहिषी शुभा। बम्पत्योश्चन्द्रलेखाख्या तयोर्जातात्मजा शुभा ॥ साभ्यासे मुनिमन्याना शास्त्राणि समपीपठत् । विचक्षणाऽभव प-लावण्यादि गुणान्विता ॥
-भप्रबाहुचरित्र, परिच्छेद ४, श्लो० ३३-३५ २. सौराष्ट्रविजयेऽथास्ति बलभीपुरभुत्तम् ।
धरेशिता प्रजापाल-नामा तत्र नयान्वितः ॥ निजप्रतापतापेन तापिताऽखिलशत्रवः। प्रजावती गिरा राजी तस्याऽसोच्चार लक्षणा॥ लोकपालाभिधस्तो कस्तयोश्चार गुणोऽभवत् । रूपसौभाग्यसम्पन्नो ज्ञानविज्ञानपारगः ॥ ...
-बही, श्लो० ३६-३८
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