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भाषा और साहित्य ]
शौरशैनी प्राकृत और उसका वाङ्मय
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मत के अनुयायी थे। उन्होंने अपने द्वारा रचित महावीर-चरित नामक ग्रन्थ में इस प्रसंग को चर्चित किया है। उन्होंने प्रसंगोपात्ततया चाणक्य द्वारा चन्द्रगुप्त को सम्राट् के पद पर अधिष्ठित किये जाने के उल्लेख के साथ-साथ क्रमशः चन्द्रगुप्त के उत्तराधिकारी बिन्दुसार, अशोक और कुणाल का वर्णन किया है । ईर्ष्यालु विमाता द्वारा छल से कुणाल को अन्धा कर दिये जाने की भी वहां चर्चा है। कुणाल के पुत्र का नाम रइधू ने चन्द्रगुप्ति लिखा है । ऐसी सम्भावना की जाती है कि सम्प्रति का ही यह नामान्तर हो ।
रइधू ने लिखा है कि अशोक ने चन्द्रगुप्त को बड़े उत्साह से राज्याभिषिक्त किया । चन्द्रगुप्ति (सम्प्रति) ने जैन धर्म के व्यापक प्रसार के लिए बहुत बड़ा प्रयास किया।
इस घटना से आगे रइधू श्रुत-केवली भद्रबाहु को जोड़ते हैं। चन्द्रगुप्त के नाम से जिन सोलह स्वप्नों की जैन साहित्य में खूब चर्चा है, रइधू के अनुसार वे चन्द्रगुप्ति (सम्प्रति) के स्वप्न थे । आने वाले कुसमय को सोचकर वैराग्यपूर्वक चन्द्रगुप्ति प्राचार्य भद्रबाहु से दीक्षित हो जाता है । आगे का वर्णन लगभग बहुत कुछ पहले उद्धृत कथानकों जैसा ही है । शिशु द्वारा अपशकुन, बारह वर्षों के दारुण दुर्भिक्ष की घोषणा, साधु-संघ का दक्षिण जाना, प्राचार्य भद्रबाहु का दिवंगमन, स्थूलाचार्य आदि श्रमणों द्वारा वस्त्र, पात्र. दण्ड आदि धारण किया जाना, दुर्भिक्ष की समाप्ति के बाद साधु-संघ का मिलना, श्वेताम्बर-दिगम्बर के रूप में संघ का विभक्त होना, प्रभृति घटनाएं वहां वर्णित हैं ।
বিবাহথীথ বন্ধু
. महाकवि रइधू ने श्रुत-केवली भद्रबाहु को जो चन्द्रगुप्ति या सम्प्रति के साथ जोड़ा है, वह संगत प्रतीत नहीं होता। धर्मघोषसूरि रचित दुःषमाकालश्रीश्रमणसंघस्तव के अनुसार भगवान् महावीर के निर्वाण के अनन्तर २१५ वर्ष तक नव नन्दों का राज्य रहा । तत्पश्चात् १०८ वर्ष तक मौर्यों का राज्य रहा। इस प्रकार यह समय वीर-निर्वाण संवत् ३२३ तक आता है । यदि श्रुत-केवली भद्रबाहु चन्द्रगुप्ति या सम्प्रति के समसामयिक होते तो इस काल-गणना के अनुसार उनका समय वीर-निर्वाण सम्वत् ३०० से पहले नहीं होता, कुछ बाद ही होता । ऐसा होने का अर्थ है, श्रुत-केवली भद्रबाहु विषयक दिगम्बर एवं श्वेताम्बर दोनों मान्यताओं का खण्डन, जिसके लिए कोई सबल, ठोस प्रमाण प्राप्त नहीं है।
भद्रबाहु को लेकर जो समय सम्बन्धी विचिकित्सा देखने में आती है, उसका मुख्य कारण भद्रबाहु नाम के कई प्राचार्यों का होना है। इसका स्पष्टीकरण यथाप्रसंग मागे किया जायेगा।
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