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भाषा और साहित्य
पोरतेनी प्राकृत और उसका पाङमयं
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कि वे सात निह्नव तो किसी एक-एक विषय में विसंवाद या विपरीत मान्यता अपनाये हुए थे तथा बोटिक निह्नव का लगभग सभी विषयों में विसंवाद था । इसीलिए उसे उक्त सात निह्ववों से पृथक्-वत् गिना जाता रहा है । श्वेताम्बरों के अनुसार इसी बोटिक निह्नव से दिगम्बर मत का प्रादुर्भाव हुआ।
जिस प्रकार श्वेताम्बर दिगम्बरों की उत्पत्ति को विकृति-मूलक मानते हैं, दिगम्बर भी श्वेताम्बरों की उत्पत्ति को लगभग उसी कोटि में लेते हैं, जिसका यथाप्रसंग आगे उल्लेख किया जायेगा । लिखने का आशय यह है कि दोनों परम्पराएं अपने को मूल मानती हैं और एक दूसरी को उससे सिद्धान्त-च्युत होकर निकली हुई बताती हैं।
प्रस्तुत विषय पर समीक्षात्मक दृष्टि से चिन्तन करने से पूर्व दोनों परम्पराओं द्वारा स्वीकृत अभिमत यहां उपस्थित किये जाते हैं ।
म्बर-मान्यता
आवश्यक-नियुक्ति में
आवश्यक-नियुक्ति में उद्धृत मूल पाठ की १४६ वी गाथा के विश्लेषण के सन्दर्भ में यह प्रसंग पाया है, जहां वृत्तिकार आचार्य मलयगिरि ने इस गाथा की व्याख्या करते हुए लिखा है : “रथवीरपुर नामक नगर में दीपक नामक उद्यान था। आर्य कृष्ण नामक प्राचार्य वहां पधारे । वहां आचार्य द्वारा की जा रही जिनकल्प सम्बन्धी प्ररूपणा के अवसर पर शिवभूति ने उपधि के सम्बन्ध में उनसे पृच्छा की । प्राचार्य ने समाधान किया। पर, मिथ्यात्व के उदय से शिवभूति नहीं माना। जैन सिद्धान्त में उसे अश्रद्धा हो गई । उसने वस्त्र छोड़ दिये और उपाश्रम से बाहर चला गया। उत्तरा नामक उसकी बहिन (साध्वी) थी। वह अपने भाई (मुनि) को वन्दन करने उद्यान में आई। अपने भाई की वैसी (नग्न) अवस्था देख, उसके अनुराग (मोह) से उसने भी वस्त्र त्याग दिये। फिर वे दोनों भिक्षा के लिए नगर में गये । एक वेश्या ने उत्तरा को वैसी स्थिति में देखा । लोग जब स्त्रियों का ऐसा वीभत्स रूप देखेंगे, वे हमारे प्रति विरक्त होंगे, यह सोचकर उस वेश्या ने उसे वस्त्र पहना दिये। उत्तरा को यह अच्छा नहीं लगा। उसने पुनः वस्त्र हटा दिये । तब उस वेश्या ने उसके वक्ष तथा कटि प्रदेश में एक-एक वस्त्र लगा दिया। जब वह उन्हें भी हटाने लगी,
१. श्रममोचित उपकरण
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