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भाषा और साहित्य ]- आर्ष (अर्द्धमागधी) प्राकृत और आगम वाङमय [ ४४५ ९. रसदेवी-अध्ययन, १०. गन्धदेवी-अध्ययन ; ये दश अध्ययन हैं। प्रथम अध्ययन, में श्रीदेवी का वर्णन है। वह देवी, देवी-वैभव, समृद्धि तथा सज्जा के साथ अपने विमान द्वारा भगवान् महावीर के दर्शन के लिए पाती है। गणधर गौतम भगवान् महावीर से उसका पूर्व भव पूछते हैं। भगवान् उसे बतलाते हैं । इस प्रकार श्रीदेवी के पूर्व जन्म का कथानक उपस्थित किया जाता है।
दूसरे से दसवें तक के अध्ययन केवल संकेत मात्र हैं, जो इस प्रकार हैं : “जिस प्रकार प्रथम अध्ययन में श्रीदेवी का वृत्तान्त वणित हुआ है, उसी प्रकार अवशिष्ट नौ देवियों का समझ लें । उन देवियों के विमानों के नाम उनके अपने-अपने नामों के अनुसार हैं। सभी सौधर्म-कल्प में निवास करने वाली हैं। पूर्व भव के नगर, चैत्य, माता-पिता, उनके अपने नाम संप्राहिणी गाथा' के अनुसार हैं । अपने पूर्व-भव में वे सभी भगवान् पार्श्व के सम्पर्क में आई, पुष्पचूला आर्या को शिष्याएं हुई। सभी शरीर प्रादि का विशेष प्रक्षालन करती थीं, शौच-प्रधान थीं। सभी देवलोक से च्यवन कर महाविदेह क्षेत्र में सिद्धि प्राप्त करेंगी। इस प्रकार पुष्पचूला का समापन हुआ।"2
१२. वहिनदशा ( वृष्णिदशा )
নাম
नन्दी-चूरिण के अनुसार इस उपांग का पूरा नाम अन्धक-वृष्णि दशा था। अन्धक शब्द काल-क्रम से लुप्त हो गया, केवल वष्णि-दशा बचा रहा । अब यह उपांग इसी नाम से प्रसिद्ध है। इसमें बारह अध्ययन हैं, जिनमें वृष्णिवंशीय बारह राजकुमारों का वर्णन है। उन्हीं राजकुमारों के नाम से वे अध्ययन हैं : १. निषधकुमार-अध्ययन २. अनीककुमार-अध्ययन, ३. प्रह्वकुमार-अध्ययन, ४. वेधकुमार-अध्ययन, ५. प्रगतिकुमार-अध्ययन, ६. मुक्तिकुमार-अध्ययन, ७. दशरथकुमार-अध्ययन, ८. दृढ़रथकुमार-अध्ययन, ९. महाधनुष्कुमार-अध्ययन, १०. सप्तधनुष्कुमार-अध्ययन, तथा ११. दशधनुष्कुमार-अध्ययन, तथा १२. शतधनुष्कुमार-अध्ययन । १. संग्राहिणी गाथा, जिसमें पूर्व-भव के नगर, नाम, माता-पिता आदि का उल्लेख रहता है,
विच्छिन्न प्रतीत होती हैं। २. एवं सेसाण वि णावण्हं भरिणयब्वं, सरिसरणामा विमारणा, सोहम्मे कप्पे । पुष्वभवे नगरे
चेइय पियमाईणं अप्पणो या नामइ जहा संगहरणीए । सव्वा पासस्स अंतिगं निक्खंताओ, पुप्फचूलारणं सिसिरणीयाओ सरीरपाउसिरणीयाओ सच्चाओ अवंतरं चहचइत्ता महाविदेहेवासे सिज्ज्ञिहिं ति । एवं खलु निक्खेवओ। पुप्फचूलाओ सम्मत्ताओ।
-पुप्फचूला, अन्तिम अंश
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