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आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन [खण्ड । २ उद्धार किया और इसे मूल सूत्र में स्थान दिया । नवनीतसार संज्ञक पंचम अध्ययन में गुरु-शिष्य के पारस्परिक सम्बन्ध का विवेचन है । उस प्रसग में गच्छ का भी वर्णन किया गया है। ऐसा प्रतीत होता है कि गच्छाचार नामक प्रकीर्णक की रचना इसी के आधार पर हुई। षष्ठ अध्ययन में पालोचना तथा प्रायश्चित्त के क्रमशः दश और चार भेदों का वर्णन है।
पति की मृत्यु पर स्त्री के सती होने तथा यदि कोई राजा निष्पुत्र मर जाए, तो उसकी विधवा कन्या को राज्य-सिंहासनासीन किये जाने का यहां उल्लेख है। ऐतिहासिकता
इस सूत्र की भाषा तथा विषय के स्वरूप को देखते हुए इसकी गणना प्राचीन भागमों में किया जाना समीचीन नहीं लगता। इसमें तन्त्र सम्बन्धी वर्णन भी प्राप्त होते हैं। जैन प्रागमों के अतिरिक्त इतर ग्रन्थों का भी इसमें उल्लेख है। अन्य भी ऐसे अनेक पहलू हैं, जिनसे यह सम्भावना पुष्ट होती है कि यह सूत्र अर्वाचीन है ।
३. ववहार ( व्यवहार) श्रुत-वाङमय में व्यवहार सूत्र का बहुत बड़ा महत्व है। यहां तक कि इसे द्वादशांग का नवनीत कहा गया है। यद्यपि संख्या में छेद-सूत्र छः हैं, पर, वस्तुत: उनमें विषय, सामग्री, रचना प्रादि सभी दृष्टियों से महत्वपूर्ण तीन ही हैं जिनमें व्यवहार सूत्र मुख्य है । अवशिष्ट दो निशीथ और वृहत्कल्प हैं । कलेवर : विषय-वस्तु
. इसमें दश उद्देशक हैं, जो सूत्रों में विभक्त हैं। कलेवर में यह श्र त-ग्रन्थ निशीथ से छोटा और वृहत कल्प से बड़ा है। भिक्षुषों, भिक्षुणियों द्वारा ज्ञात-अज्ञात रूप में प्राचरित दोषों या सवलनानों की शुद्धि या प्रतिकार के लिए प्रायश्चित्त, पालोचना प्रादि का यहां बहुत मार्मिक वर्णन है। उदाहरणार्थ, प्रथम उद्देशक में एक प्रसंग है । यदि एक साधु अपने गण से पृथक् होकर एकाकी विहार करने लगे और फिर यदि अपने गरण में पुनः समाविष्ट होना चाहे, तो उसके लिए आवश्यक है कि वह उस गण के प्राचार्य, उपाध्याय आदि के समक्ष अपनी गर्दा, निन्दा, आलोचना-पूर्वक प्रायश्चित्त अगीकार कर प्रात्म-मार्जन करे। यदि प्राचार्य या उपाध्याय न मिले, तो साम्भोगिक, विद्यागमी साधुओं के समक्ष ऐसा करे। यदि वह भी न मिले, तो सूत्रकार ने अन्य साम्भोगिक १. यहां यह ज्ञातव्य है कि दिगम्बर आम्नाय में नवकार मन्त्र के विषय में भिन्नमा यता है।
षट्खण्डागम के धवला टीकाकार वीरसेन का अमिमत है कि आचार्य पुष्पदन्त- नवकार मन्त्र के स्रष्टा हैं।
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