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भाषा और साहित्य 1
आर्ष (अर्द्धमागधी ) प्राकृत और आगम वाङमय [ ४४३ दशों पुत्रों के क्रमशः पुत्र थे । प्रथम अध्ययन में कालकुमार के पुत्र पद्मकुमार के जन्म, दीक्षा ग्रहण, स्वर्ग-गमन तथा अन्ततः महा-विदेह क्षेत्र में जन्म लेकर सिद्धत्व प्राप्त करने तक का संक्षेप में लगभग चार-पांच पृष्ठों में वर्णन है । दूसरे अध्ययन में सुकालकुमार के पुत्र महापद्मकुमार का संक्षिप्ततम विवरण है । केवल उसके जन्म के वृत्तान्त का पांचसात पंक्तियों में सूचन कर श्रागे प्रथम अध्ययन की तरह समझ लेने का संकेत किया गया है । तीसरे ग्रध्ययन से दशवें अध्ययन तक की सूचना केवल आधी पंक्ति में यह कहते हुए कि उन्हें प्रथम अध्ययन की तरह समझ लेना चाहिए, दे दी गयी है । साथ-साथ यह भी सूचित किया गया है कि उनकी माताएं उनके सदृश नामों की धारक थीं । अन्त में दशों कुमारों के दीक्षा पर्याय । की भिन्न-भिन्न समयावधि तथा भिन्न भिन्न देवलोक प्राप्त करने का उल्लेख करते हुए उपांग का परिसमापन कर दिया गया है। यह उपांग बहुत संक्षिप्त है ।
मगध भगवान् महावीर तथा बुद्ध के समय में पूर्व भारत का एक प्रसिद्ध एकतन्त्रीय ( एक राजा द्वारा शासित ) राज्य था । कल्पिका तथा कल्पावतंसिका प्रागितिहासकालीन समाज की स्थिति जानने की दृष्टि से उपयोगी हैं ।
१०. पुष्क्रिया ( पुष्पिका )
प्रस्तुत उपांग में दश श्रध्ययन हैं, जिनमें ऐसे स्त्री-पुरुषों के कथानक हैं, जो धर्माराधना और तपः साधना द्वारा स्वर्ग गये । अपने विमानों द्वारा वैभव, समृद्धि एवं सज्जा पूर्वक भगवान् महावीर को वन्दन करने आये ।
तापस-वन
तीसरे अध्ययन में सोमिल ब्राह्मण के कथानक के सन्दर्भ में चालीस प्रकार के तापसों
का वर्णन है । उनमें कुछ इस प्रकार है :
(क) केवल एक कमण्डलु धारण करने वाले ।
(ख) केवल फलों पर निर्वाह करने वाले
(ग) एक बार जल में डुबकी लगाकर तत्काल बाहर निकलने वाले ।
(घ) बार-बार जल में डुबकी लगाने वाले ।
(ङ) जल में ही गले तक डूबे रहने वाले ।
(च) सभी वस्त्रों, पात्रों और देह को प्रक्षालित रखने वाले ।
(छ) शंख-ध्वनि कर भोजन करने वाले
(ज) सदा खड़े रहने वाले ।
१. श्रमरण - जीवन
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