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भाष और साहित्य ] आर्ष (अद्ध मागधी) प्राकृत और आगम वाङमय [ ४४१
पहले कभी सम्भवतः ये पांचों एक ही निरयावलिका सूत्र के रूप में रहे हों। पर, जब अंगों के समकक्ष उपांग भी बारह की संख्या में प्रतिष्ठित किये जाने अपेक्षित माने गये, तो उन्हें पांच उपांगों के रूप में पृथक्-पृथक मानने की परम्परा चल पड़ी।
८. निरयावलिया (निरयावलिका) या कप्पिया (कल्पिका) নিশান
प्रस्तुत उपांग दश अध्ययनों में विभक्त है, जिनके नाम इस प्रकार हैं : १. कालकुमार - अध्ययन, २. सुकालकुमार - अध्ययन, ३. महाकालकुमार-अध्ययन, ४. कृष्णकुमार-अध्ययन, ५. सुकृष्णकुमार-प्रध्ययन, ६. महाकृष्णकुमार-अध्ययन, ७. वीरकृष्णकुमार-प्रध्ययन, ८. रामकृष्णकुमार-प्रध्ययन, ९. प्रियसेन-कृष्णकुमार-प्रध्ययन तथा १०. महासेन कृष्णकुमार-अध्ययन ।
जिन कुमारों के नाम से ये अध्ययन हैं, वे मगधराज श्रेणिक के पुत्र तथा कूणिक (अजातशत्रु , के भाई थे, जो वैशाली गणराज्य के अधिनायक चेटक और कूणिक के बीच हुए संग्राम में चेटक के एक-एक बाण से क्रमश: मारे गये। विषय-वस्तु .
प्रथम अध्ययन कृष्णकुमार के प्रसंग से प्रारम्भ होता है। उसकी माता कालीदेवी कूरिणक के साथ युद्ध में गये हुए अपने पुत्र के विषय में भगवान् महावीर से प्रश्न पूछती है । भगवान् से यह जानकर कि वह युद्ध में चेटक के बाण से मारा गया है, वह बहुत दुःखित और शोकान्वित हो जाती है। कुछ यथावस्थ होने पर वापिस लौट जाती है। गणधर गौतम तब भगवान् महावीर से कालकुमार के अग्रिम भव और विगत भव के सम्बन्ध में प्रश्न करते हैं। उसका भगवान जो उत्तर देते हैं, उस सन्दर्भ में कूणिक-अजातशत्रु के जीवन का इतिवृत्त विस्तृत रूप में उपस्थित हो जाता है। श्रेणिक की गर्भवती रानी चेल्लणा का पति के कलेजे के मांस के तले हुए शोलों । तथा मदिरा का प्रसन्नतापूर्वक प्रास्वाद लेने का निघृण दोहद, अभयकुमार द्वारा बुद्धिमत्तापूर्वक उसकी पूर्ति, कूणिक का जन्म, माता द्वारा उसे उकुरुडी (धूरे ) पर फिकवाया जाना, अंणिक द्वारा उसे वापिस लाया जाना, स्नेहपूर्वक पाला जाना,बड़े होने पर कूणिक द्वारा पिता श्रेणिक को बन्दी-गृह में डाल राजसिंहासन हथियाया जाना, श्रेणिक द्वारा दुःखातिरेक से प्रात्महत्या किया जाना, अपने छोटे भाई बोहल्लकुमार के कारण सेचनक हस्ती आदि न लौटाये जाने से वैशाली गणराज्य के अधिपति चेटक पर कूणिक द्वारा चढ़ाई किया जाना आदि १. मूल पाठ में 'सोलेहि' शब्द आया है, जिसका संस्कृत रूप 'शोलः' होगा। शूल या
कांटे से तले जाने के कारण उस प्रकार के मांस के टुकड़ों को शौल कहा जाता होगा ।
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