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मागम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन [खण्ड : २ स्थानांग में कम्मविवागदसाओ के नाम से उल्लेख हुआ है। वहां उवासगदसाओ, अंतगडवसाओ, अणु तरोववाइयवसाओ तथा पण्हावागरणवसाओ की तरह इसके दश अध्ययन बतलाये गये हैं, जो इस प्रकार हैं : १. मृगापुत्र अध्ययन, २. गोत्रास अध्ययन, ३. अण्ड अध्ययन, ४. शकट अध्ययन, ५. ब्राह्मण अध्ययन, ६ नन्दिषेण अध्ययन, ७. सौकरिक अध्ययन, ८. उम्बर अध्ययन, ९. सहस्दाह प्रामलक अध्ययन, १., कुमारलक्ष्मी मध्ययन ।
वर्तमान में प्राप्त विपाक सूत्र के प्रथम श्रुत-स्कन्ध के दस अध्ययन' इस प्रकार हैं१. मृगापुत्र अध्ययन, २. उज्झित अध्ययन, ३. अभग्ग ( अभग्न) सेन अध्ययन, ४. शकट अध्ययन, ५. बृहस्पति अध्ययन, ६. नन्दि अध्ययन, ७. उम्बर अध्ययन, ८. शौर्यदत्त अध्ययन, ९. देवदत्ता अध्ययन, १०. अंजु अध्ययन ।
द्वितीय श्रुत-स्कन्ध के अध्ययन इस प्रकार हैं : १. सुबाहु अध्ययन, २. भद्रनन्दी अध्ययन, ३. सुजात अध्ययन, ४. सुवासव अध्ययन, ५. जिन दास अध्ययन, ६. धनपति अध्ययन, ७. महाबल अध्ययन, ८. भद्रनन्दि अध्ययन, ९. महाचन्द्र अध्ययन तथा १०. वरदत्त अध्ययन । द्वितीय श्रत-स्कन्ध में सुबाहुकुमार से सम्बन्धित प्रथम अध्ययन विस्तृत है । अग्रिम नौ अध्ययन, अत्यन्त संक्षिप्त हैं। उनमें पात्रों के चरित की सूचनाएं मात्र हैं । प्राय: सुबाहुकुमार की तरह परिज्ञात करने का संकेत कर कथानक का संक्षेप कर दिया गया है। इन्हें केवल नाम मात्र के अध्ययन कहा जा सकता है । स्थानांग सूत्र में वरिणत कम्मविवागवसाओ के तथा विकाप सूत्र प्रथम श्रुत-स्कन्ध के निम्नांकित अध्ययन प्रायः नाम-सादृश्य लिये हुए हैं :
१. कम्मविवागदसारणं दस अज्झयणा पण्णत्ता, तं जहा
मियापुत्ते य गुत्तासे अंडे सगडेइ यावरे । माहणे नंदिसेरणय, सूरिए य उदुंबरे ॥ सहसुद्दाहे आमलए, कुमारे लच्छई ति य ।
__ स्थानांग, स्थान १०, ९३ २. समणणं आइगरेणं जाव संपत्तेणं दुहविवागाणं दस अज्मयणा पण्णता, तं जहा -
मियापुत्ते, उन्मिय ए, अभग्ग, सगड़े, वहस्सइ, नंदी, उंबर, सोरियदत्ते य, देवदत्ता य, अंजू य।
-विपाक सूत्र, प्रथम श्रुत-स्कन्ध, प्रथम, अ०, ९ १. समणणं जाव संपतेणं सुहविवागाणं दस अज्झयणा पण्णता, तं जहा
सुबाहु, भद्दणंदी, सुजाए, सुवासवे, तहेण जिणवासे। - धणपति य महब्बलो, भद्दणंदी, महचवे वरदत्ते ॥
-विपाक सूत्र, द्वितीय श्रुत-स्कन्ध, प्रथम, अ० २
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