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नाम के प्रतिरूप
श्रुतांग के नाम में प्रश्न और व्याकरण; इन दो शब्दों का योग है, जिसका अर्थ है, प्रश्नों का विश्लेषण, उत्तर या समाधान। पर, श्राज इसका जो स्वरूप प्राप्त है, उससे स्पष्ट है कि इसमें प्रश्नोत्तरों का सर्वथा अभाव है ।
वर्तमान रूप
आगम और त्रिपिटक एक अनुशीलन
१०. पण्डवागरणाई (प्रश्नव्याकरण)
प्रश्नव्याकरण का जो संस्करण प्राप्त है, वह दो खण्डों में विभक्त है। पहले खण्ड में पांच प्रस्रवद्वार - हिमा, मृषावाद (ग्रन्य) ग्रदन (चौरे ) ग्रब्रह्मचर्य तथा परिग्रह का स्वरूप बड़े विस्तार के साथ बतलाया गया है । द्वितीय खण्ड में पांच सवरद्वार- श्रहिंसा सत्य, दत्त (अचौर्य), ब्रह्मचर्य तथा निष्परिग्रह की विशद व्याख्या की गयी है । प्राचार्य अभयदेव सूरि की टीका के अतिरिक्त प्राचार्य नयविमल की भी इस पर टीका है ।
१.
वर्तमान स्वरूप : समीक्षा
स्थानांग सूत्र में प्रश्नव्याकरण के उपमा, संख्या, ऋषि-भाषित, श्राचार्य-भाषित, महावीर भाषित, क्षौमक' प्रश्न, कोमल प्रश्न, प्रादर्श - प्रश्न' तथा बाहुप्रश्न ; अध्ययनों की चर्चा है ।
इन दश +
२. विद्या- विशेष जिससे वस्त्र में देवता का आहवान किया जाता है । - पाइअ सहमहावो, पृ० २८१
४
[ खण्ड : २
प्रश्नाश्च पृच्छाः, व्याकरणानि च निर्वचनानि समाहारत्वात् प्रश्नव्याकरणम् । तत्प्रतिपादको ग्रन्योऽपि प्रश्नव्याकररणम । प्रश्ना अंगुष्ठादिप्रश्नविद्यास्ता व्याक्रियन्ते अभिधीयन्ते यस्मिन्निति प्रश्नव्याकरणम् । प्रवचन पुरुषस्य दशमेऽङ्गे । अयं च व्युत्पत्यर्थोऽस्य पूर्वकालेsभूत् । इदानीं त्वास्त्रवपंचकसंवरपंचकवाकृतिरेवोहोपलभ्यते - -1
-- अभिधान राजेन्द्र, पंचम भाग, पृ० ३९१
३. विद्या - विशेष, जिससे दर्पण में देवता का आगमन होता है । --- पाइअसद्दमहाण्णवो, पृ० ५१
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पावागरण दसाणं दस अज्झयरणाप०, तं. उवमा, संखा, इसिमासियाई, आयरियमासियाई महावीरभासियाई, खोमगपरिगाई, कोमलपसिणाई, अद्दागप सिणाई, अंगुट उपसणाई, बाहुपसिराई ।
--स्थानांग, स्थान १०,९०
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