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आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन [खण्ड : २. जीवन कैसा था, उस समय देश की समृद्धि कैसी थी, इत्यादि विषयों का इस श्रु तांग से अच्छा परिचय मिलता है। प्राचार्य अभयदेव सूरि की इस पर टीका है ।
८. अन्तगडदसाओ ( अन्तकृदशा)
नामः व्याख्यr
जिन महापुरुषों ने घोर तपस्या तथा प्रात्म-साधना द्वारा निर्वाण प्राप्त कर जन्ममरण-पावागमन का अन्त किया, वे अन्तकृत् कहलाये। उन अर्हतों का वर्णन होने से इस श्रु तांग का नाम अन्तकृद्दशांग है। इस श्रु तांग में आठ वर्ग हैं। प्रथम में दश, द्वितीय में आठ, तृतीय में तेरह, चतुर्थ में दश, पंचम में दश, षष्ठ में सोलह, सप्तम में तेरह तथा अष्टम वर्ग में दश अध्ययन हैं । इस श्रु तांग में कथानक पूर्णतया वरिणत नहीं पाये जाते । 'वण्णओ' और 'जाव' शब्दों द्वारा अधिकांश वर्णन व्याख्या-प्रज्ञप्ति अथवा ज्ञातृधर्मकथा आदि से पूर्ण कर लेने की सूचना मात्र कर दी गयी है।
एक ऊहापोह
स्थानांग में अन्तकृद्दशा का जो वर्णन आया है, उससे इसका वर्तमान स्वरूप मेल नहीं खाता। वहां इसके दश' अध्ययन बतलाये हैं। उन अध्ययनों के नाम इस प्रकार हैं : १. नमि अध्ययन, २. मातंग अध्ययम, ३. सोमिल अध्ययन, ४. रामगुप्त अध्ययन, ५. सुदर्शन अध्ययन, ६. जमालि अध्ययन, ७. भगालि अध्ययन, ८. किंकर्मपल्लित अध्ययन, ९. फालित अध्ययन, १०. मंडितपुत्र अध्ययन ।
बहुत सम्भावित यह प्रतीत होता है कि प्रारम्भ में इस ग्रन्थ में उपासकदशांग की तरह दश ही अध्ययन रहे होंगे। पीछे पल्लवित होकर ग्रन्थ अपने वर्तमान रूप में पचा हो। जिस प्रकार उपासक दशा में गृहस्थ साधकों या श्रावकों के कथानक वरिणत हैं, उसी तरह इस श्र तांग में अर्हतों के कथानक वणित किये गये हैं और वे प्रायः एक जैसी शैली में लिखे गये हैं।
१. वस दसाओ पण्णत्ताओ तं जहा
कम्मविवागदसाओ, उवासगवसाओ, अंतगडवसाओ, अरगुत्तरोववाइयवसाओ, आयारदसाओ, पण्हा वागरणदसाओ, बंधवसाओ, दोगिद्धि वसाओ, दोहदसाओ, संखेवियदसाओ।
-स्थानांग सूत्र, स्थान १०, ९२
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