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३८८] आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
खण्ड: २ पूर्व-विच्छेद-काल
श्वेताम्बर-मान्यता के अनुसार आचार्य स्थूलभद्र के देहावसान के साथ अन्तिम चार पूर्षों ( जो उन्हें सूत्रात्मक रूप में प्राप्त थे, अर्थात्मक रूप में नहीं ) का विच्छेद हो गया । तदनन्तर दश पूर्वो की परम्परा आय वज़ तक चलती रही। नन्दी स्थविरावली के अनुसार आय वज्र भगवान् महावीर के १८ वे पट्टधर थे। उनका देहावसान वीर-निर्वाणाब्द ५८४ में माना जाता है। आय' वज्र के स्वर्गवास के साथ दशम पूर्व विच्छिन्न हो गया।
आचार्य स्थूलभद्र से आचार्य वच तक जो दश पूर्व-ज्ञान की परम्परा प्रवृत्त रही, तद्गत ज्ञानियों के नाम और समय इस प्रकार हैं :
समय
४५ वर्ष
३० वर्ष
४६ वर्ष
४४ वर्ष
नाम आचार्य स्थूलभद्र आचार्य महागिरि आचार्य सुहस्ती आचार्य गुणसुन्दर आचार्य कालक आचार्य स्कन्दिल आचार्य रेवतीमित्र आचार्य मंगू आचार्य धर्म आचर्या भद्रगुप्त आचार्य श्रीगुप्त आचार्य वन
४१ वर्ष ३८ वर्ष ३६ वर्ष
२० वर्ष २४ वर्ष
३६ वर्ष १५ वर्ष
३६ वर्ष कुल ४१४ वर्ष पहले के १७० वर्ष
५८४ वर्ष
आय वच के पट्टाधिकारी आय रक्षित हुए । विशेषावश्यक भाष्य के दृत्तिकार मलधारी हेमचन्द ने २५११ वी गाथा की व्याख्या में जो विवेचन किया है, उससे प्रतीत होता है कि आय रक्षित को नौ पूर्वो का परिपूर्ण तथा दशम पूर्व के सिर्फ २४ यविकों का शान था। आय रक्षित का युगप्रधान-काल ५८४-५९७ वीर-निर्वाणाब्द माना जाता है। उनके एक शिष्य दुर्बलिका पुष्यमित्र थे। कहा जाता है, उन्होंने नौ पूर्वो का ज्ञान प्राप्त किया, पर, यथेष्ट अभ्यास न कर पा सकने के कारण उन्हें नौवां पूर्व विस्तृत होने लगा।
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