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भाषा और साहित्य ) आर्ष (अद्ध मागधी) प्राकृत और आगम वाङमय ( ३९७
दुर्भिक्ष का समय बीता। समाज की स्थिति सुधरी। जो भ्रमण बच पाये थे, उन्हें चिन्ता हुई कि श्रुत का संरक्षण कसे किया जाय ? उस समय आचार्य स्कन्दिल युग-प्रधान थे। उनका युगप्रधानत्व-काल इतिहास-वेत्ताओं के अनुसार वीर-निर्वाण ८२७-८४० माना गया है । नन्दी स्थविरावली में आचार्य स्कन्दिल का उल्लेख भगवान महावीर के अनन्तर चौबीसवें स्थान पर है । नन्दी-कार ने उनकी प्रशस्ति में कहा है कि आज जो अनुयोगशास्त्रीय मथे-परम्परा भारत में प्रवृत्त है, वह उन्ही की देन है। वे परम यशस्वी थे। नगर-नगर में उनकी कीर्ति परित्याप्त थी।
नन्दी-सूत्र देवद्धिगणी क्षमाश्रमण द्वारा विरचित माना जाता है। वे अन्तिम आगमवाचना ( तृतीय वाचना ) के अध्यक्ष थे। देवद्धिगणी क्षमाश्रमण ने आचार्य स्कन्दिल के अनुयोग के भारत में प्रवृत्त रहने का जो उल्लेख किया है, उसका कारण यह प्रतीत होता है कि उन्होंने अपने नेतृत्व में समायोजित वाचना में यद्यपि पिछली दोनों ( माथुरी और वालभी ) वाचनाओं को दृष्टिगत रखा था, फिर भी आचार्य स्कन्दिल की (माथरी) वाचना को मुख्य आधार-रूप में स्वीकार किया था; अतः उनके प्रति आदर व्यक्त करने की दृष्टि से उनका यह कहना स्वाभाविक है। । ___मथुरा तब उत्तर भारत में जैन थर्म का मुख्य केन्द्र था। वहां आचार्य स्कन्दिल के नेतृत्व में आगम-वाचना का आयोजन हुआ। आगम वेत्ता मुनि दूर-दूर से आये। जिन्हें जैसा-जैसा स्मरण था, सब समन्वित करते हुए कालिक श्रुत संकलित किया गया। उस समय आचार्य स्कन्दिल ही एकमात्र अनुयोगधर थे। उन्होंने उपस्थित श्रमणों को अनुयोग की वाचना दी। यह वाचना मथुरा में दी गयी थी; अतः 'माथुरो वाचना' कहलाई। इसका समय वही अर्थात् वीर निर्वाणान्द ८२७ और ८४० के मध्य होना चाहिए, जो आचार्य स्कन्दिल का युग-प्रधान-काल है।
वालमी वाचना
है लगभग माथुरी वाचना के समय में ही बलभी-सौराष्ट्र में नागार्जुन सूरि के नेतृत्व में एक मुनि-सम्मेलन आयोजित हुमा, जिसका उद्देश्य विस्मृत श्रुत को व्यवस्थित करना था। उपस्थित मुनियों की स्मृति के आधार पर श्रुतोद्धार किया गया। आगम तथा उनके अतिरिक्त और भी जो-जो प्रकरण-ग्रन्थ नागार्जुन सूरि और समागत मुनियों को स्मरण थे, सम्पादित-व्यवस्थित किये गये । जो अत्यन्त विस्मृत पाठ वाले स्थल थे, उनका भलीभांति पर्यवेक्षण कर अर्थ-संगति के अनुसार उन्हें ठीक किया गया। इस प्रकार जितना उपलब्ध हो सका, वह सारा वाङमय सुव्यवस्थित किया गया। नागार्जन सूरि ने समागत साधुओं को चाचना दी।
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